आज है विवाह पंचमी, जानें पूजा विधि, कथा और महत्वपूर्ण बातें

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ABC NEWS: सनातन धर्म में मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में भगवान शिव का धनुष तोडऩे के बाद इसी दिन भगवान राम का विवाह मां सीता से हुआ था. तब से ही इस दिन को विवाह पंचमी के उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से विवाह की सब बाधायें दूर होकर कुंवारे युवक- युवतियों को योग्य जीवनसाथी मिलता है. विवाहित स्त्री- पुरुषों का वैवाहिक जीवन भी सुख व समृद्धि से भरता है.

विवाह पंचमी की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, भगवान राम व सीता के विवाह का प्रसंग गोस्वामी तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस व वाल्मीकि रामायण सहित विभिन्न रामायणों व पौराणिक कथाओं में है. जिसके अनुसार, मिथिलापति राजा जनक ने जब अपनी बेटी सीता के विवाह के लिए धनुष यज्ञ रचा तो भगवान राम व लक्ष्मण मुनि विश्वामित्र के साथ वहां पहुंचे थे.

यहां राजा जनक ने शिव धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने वाले पुरुष से ही सीता के विवाह की शर्त रखी थी. इस पर रावण सहित देश-विदेश से आए कई राजाओं ने उस शर्त को पूरा करने के लिए अपना पूरा बल लगा दिया, पर वे धनुष को हिला तक नहीं पाए. इस पर राजा जनक सीता के योग्य वर नहीं मिलने पर जब दुखी हो गए, तब विश्वामित्र ने भगवान राम को धनुष उठाने को कहा.

आज्ञा पाकर भगवान राम ने पलभर में ही धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाते हुए उसे तोड़ दिया. इसके बाद सीता ने जयमाला भगवान राम के गले में पहनाई और अयोध्या से राजा दशरथ को बुलावा भेजकर राजा जनक ने पूरे विधि- विधान से सीता का विवाह भगवान राम से किया था.

विवाह पंचमी का पूजन
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार इस दिन स्त्री व पुरुषों को उपवास रखते हुए राम व सीता के विवाह का संकल्प लेना चाहिए. फिर शुभ मुहूर्त में भगवान राम व सीता की मूर्ति या तस्वीर रखकर विधि- विधान से उनका विवाह करवाना चाहिए. इस दिन उनके विवाह की कथा कहने व सुनने का विधान भी है. रामचरितमानस के अनुसार भगवान राम व सीता के विवाह का प्रसंग जो भी प्रेमपूर्वक गाता व सुनता है, उसके लिए सदा आनंद ही आनंद होता है. उस पर भगवान राम व सीता की कृपा हमेशा बनी रहती है.

विवाह पंचमी पर विवाह पर रोक
विवाह पंचमी पर भगवान राम व सीता का विवाहोत्सव तो मनाया जाता है, पर इस दिन विवाह पर रोक होती है. इसकी वजह इस तिथि पर विवाह के बाद भगवान राम व सीता का वैवाहिक जीवन कष्टों से भरा होना था. हालांकि पौराणिक मान्यता ये भी है कि भगवान राम ने रावण को मारकर राम राज्य की स्थापना के लिए पूरी लीला रची थी और उनका कष्ट उसी लीला का भाग था. ऐसे में इस तिथि का भगवान राम व सीता के कष्टमय जीवन से कोई संबंध नहीं है.

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