ABC News: तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दे दी है. तीस्ता सीतलवाड़ को उनकी एनजीओ से जुड़े मामले को लेकर अहमदाबाद अपराध शाखा ने 25 जून को गिरफ्तार गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला दो महीने से अधिक समय से हिरासत में है. पुलिस ने उनसे 7 दिन पूछताछ भी की है. हाई कोर्ट ने 19 सितंबर को जमानत पर सुनवाई की बात कही है. इस दौरान उसे अंतरिम जमानत देना उचित है. वह पासपोर्ट निचली अदालत में जमा करें और जांच में सहयोग करें.
इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ को दो महीने से अधिक समय तक हिरासत में रखने के तरीके के बारे में चिंता जताते हुए सवाल किया था कि गुजरात उच्च न्यायालय ने जवाब मांगने के लिए छह सप्ताह के बाद का नोटिस कैसे जारी किया. भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अगुवाई वाली पीठ ने यह भी कहा था कि इस मामले में ऐसा कोई अपराध नहीं है जिसके लिए जमानत नहीं दी जा सकती, वह भी एक महिला को. न्यायाधीशों ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ दो महीने से अधिक समय से जेल में हैं और अभी तक कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है. सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई के दौरान गुजरात के लिए पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये मानना गलत है कि सिर्फ तीस्ता के मामले में हाई कोर्ट ने जमानत पर नोटिस के बाद सुनवाई के लिए 6 हफ्ते बाद का समय दिया. यह गुजरात हाई कोर्ट में सामान्य प्रक्रिया है. 3 अगस्त को यानी जिस दिन तीस्ता की याचिका पर नोटिस जारी हुआ, उस दिन कई लोगों को सुनवाई के लिए इससे भी आगे का समय दिया गया. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट चाहे तो हाई कोर्ट से 19 सितंबर से पहले सुनवाई के लिए कह दे, लेकिन खुद जमानत न दे, यह गलत मिसाल होगी. वहीं तीस्ता सीतलवाड़ के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार तीस्ता को अपना दुश्मन मानती है. उन्हें किसी भी तरह जेल में बनाए रखना चाहती है. याचिकाकर्ता से 7 दिन तक पुलिस हिरासत में पूछताछ हुई है और अब भी न्यायिक हिरासत में है. याचिकाकर्ता सेशन्स कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं. कपिल सिब्बल ने कहा कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के आधार पर एफआईआर हुई. एफआईआर में याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप ठीक से दर्ज नहीं थे. वह दो महीने से अधिक समय से जेल में है, जमानत मिलनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी समझ से मामले में यह बिंदु अहम हैं- याचिकाकर्ता महिला है, 2 महीने से अधिक समय से जेल में है, जो आरोप लगे हैं वह 2002 से 2012 के बीच के हैं और पुलिस ने 7 दिन तक हिरासत में पूछताछ की है. तुषार मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट में मामला लंबित रहते यहां से बेल नहीं मिलनी चाहिए. सुनवाई हाई कोर्ट में ही होनी चाहिए. मेहता ने यह भी कहा कि जांच के दौरान कई सबूत मिले हैं, जो एफआईआर में नहीं लिखे गए थे.