कुछ शहरी एलीट लोगों की सोच है समलैंगिक विवाह, जानें केंद्र ने SC में क्या कहा

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ABC News: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह का विरोध किया है. केंद्र ने कोर्ट को दिए अपने जवाब में कहा कि ‘अदालतें समलैंगिक विवाह के अधिकार को मान्यता देकर कानून की एक पूरी शाखा को फिर से नहीं लिख सकती हैं क्योंकि ‘एक नई सामाजिक संस्था का निर्माण’ न्यायिक निर्धारण के दायरे से बाहर है.

केंद्र ने कहा है कि ज्यूडिशियल अवार्ड की मदद से समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. यह संसद के क्षेत्र में अधिकार क्षेत्र में आता है न कि सुप्रीम कोर्ट के. केंद्र ने कहा कि कोर्ट के लिए याचिकाएं “सोशल एक्सेप्टेंस के उद्देश्य से अर्बन एलीट आईडियाज को दर्शाती हैं. केंद्र ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता न देने का विकल्प विधायी नीति का एक पहलू है. यह स्पष्ट विधायी नीति के मद्देनज़र अदालत में न्याय करने के लिए सही विवाद नहीं है. केंद्र ने कहा कि शादी केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच हो सकती है. केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह मामले में रविवार (16 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर कोर्ट से याचिकाओं पर पहले फैसला के लिए कहा है. केंद्र ने तर्क दिया है कि संसद की जवाबदेही नागरिकों के प्रति है और इसे लोकप्रिय इच्छा के अनुसार काम करना चाहिए, खासकर जब पर्सनल लॉ की बात आती है. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया है. इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, पीएस नरसिम्हा और हेमा कोहली शामिल हैं. मामले पर अब अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी.

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