रासलीला देखने के लिए कोयल बन छुपे थे शनि देव, इस नाम से प्रसिद्ध है वह स्थान

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ABC NEWS: श्रीकृष्ण की ब्रजभूमि में कोसीकलां से 10 किमी दूर पश्चिम में कोकिलावन है. यह वो क्षेत्र है, जिसके बारे में मान्‍यता है कि यहां पर शनि देव कोयल बनकर पेड़ों के झुरमुट में बैठ गए थे और उन्‍होंने छिपकर श्रीकृष्ण की रासलीला देखी. बाल्‍यावस्‍था में कृष्ण गोपियों के साथ रात को रास रचाते थे. देवताओं में देखने की बड़ी लालसा रहती थी. शनि देव भी रास देखने के लिए आए. चूंकि उनका रूप भयंकर था, इसलिए उन्होंने कोयल पक्षी का रूप धारण कर लिया, ताकि किसी की नजर भी पड़ जाए तो कोई समस्या न हो. हालांकि, कन्हैया ने शनि देव को पहचान लिया. किवदंतियां हैं कि तब शनि ने कृष्ण के प्रियजनों को न सताने का वचन दिया था. इसलिए सदियों से ही यहां हर शनिवार को बड़ी संख्या में दूर-दूर के लोग आते हैं. जन्माष्टमी (Janmashtami) आने वाली है तो जानते हैं इस को​किलावन के बारे में.

कहां है को​किलावन
शनि देव के कोयल बनने के कारण ही इस जगह को कोकिलावन कहा जाने लगा. यहां अब सवा कोस के बीच में वन फैला है, तीर्थयात्रियों को उसकी परिक्रमा करनी होती है. यहां गांव का नाम भी कोकिलावन है. परिक्रमा मार्ग में घास के तिनके बांधने से शनि देव को प्रसन्न करने की परंपरा रही है. कोकिलावन राधा की नगरी बरसाना के पास पड़ता है और मथुरा से यह 54 किलोमीटर दूर है.

हर शनिवार लगता है मेला
कोकिलावन में शनि देव का बहुत प्राचीन सिद्धपीठ है. काले रंग की विशाल प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाया जाता है और दीपक जलाए जाते हैं. हर शनिवार को भारी भीड़ रहती है. सेठ हजारों लोगों को भरपेट खाना खिलाते हैं.

सूर्य के पुत्र हैं शनि, उनका भी है कुंड
शनि सूर्य के पुत्र हैं. इसलिए, यहीं पर सूर्य कुंड भी है. लोग सूर्य कुंड में जरूर स्नान करते 2 कुंड मंदिरों के पास ही बने हैं, जिनमें महिलाओं का अलग और पुरुषों के अलग है. इनकी गहराई काफी ज्यादा है और ये कभी सूखते भी नहीं हैं. रस्सियों और चेन के जरिए इनमें डुबकी लगाई जाती है. तैराक छलांग मारकर नहाते हैं.

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