करवा चौथ में महत्वपूर्ण होता है करवा, देवी का प्रतीक मानकर की जाती है पूजा

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ABC NEWS: करवा चौथ का पर्व सुहागिन स्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. इस साल करवा चौथ का पर्व गुरुवार 13 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु व स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात्रि में चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं. वैसे तो करवा चौथ की पूजा में कई सामग्रियां ज़रूरी होती हैं, लेकिन इसमें मिट्टी का करवा सबसे महत्वपूर्ण होता है. इसके बिना करवा चौथ की पूजा अधूरी मानी जाती है. दिल्ली के आचार्य गुरमीत सिंह जी से जानते हैं करवा चौथ पर करवा के महत्व के बारे में.

देवी का प्रतीक होता करवा
करवा चौथ की पूजा में प्रयोग किए जाने वाला करवा मिट्टी से बना होता है. यह टोंटीदार या नलकी नुमा आकार का होता है. मिट्टी से बने इस करवा को देवी करवा माता का प्रतीक मानकर इसकी पूजा की जाती है. यही कारण है कि करवा चौथ पर करवा का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है.

करवा चौथ में दो करवा का महत्व
करवा चौथ की पूजा में एक नहीं, बल्कि दो करवा का महत्व होता है. पूजा के दौरान दो करवा रखे जाते हैं. इसमें एक करवा को देवी मां का प्रतीक माना जाता है. तो वहीं दूसरा व्रती महिला का होता है. करवा को साफ करके इसमें रक्षासूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के मिश्रण से स्वास्तिक बनाकर पूजा में प्रयोग किया जाता है.

करवा पूजा विधि
करवा की पूजा से पहले पीले रंग की मिट्टी से गौरी जी की प्रतिमा बनाई जाती है और उनकी गोद में गणेशजी को बिठाया जाता हैं. अगर आप मिट्टी की प्रतिमा नहीं बना पाएं तो बाजार से इसी तरह की प्रतिमा भी ला सकते हैं. मां गौरी को सुहाग का सामान अर्पित कर उनकी पूजा-आराधना की जाती है. इसके बाद करवा भरा जाता है. कुछ जगहों पर करवा में अनाज, मेवे आदि भरते हैं. करवा पर 13 रोली की बिंदी को रखा जाता है और हाथ में गेहूं या चावल के दाने लेकर करवा चौथ की व्रत कथा सुनी जाती है.

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