127 साल पुराना यतीमखाना खाली कराया गया, पुलिस और अधिकारियों ने डाला डेरा

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ABC NEWS: ( भूपेंद्र तिवारी ) कानपुर में यतीमखाना मुस्लिम ऑर्फिनेज को बंद कर दिया गया है. ऑर्फिनेज में रह रहे 42 बच्चों को अब शिफ्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. सोमवार को 10 माताएं अपने नाबालिग बच्चों को लेने के लिए यतीमखाना पहुंचीं।.वहीं ऑर्फिनेज में फतेहपुर, सीतापुर व प्रयागराज के भी 5 से 6 बच्चे रहते हैं. कुल 28 नाबालिग बच्चे हैं. इसमें 10 नाबालिग बच्चियां भी शामिल हैं.

सोमवार से शुरू हुई बच्चों को सौंपने की प्रक्रिया
जिला प्रोबेशन अधिकारी जयदीप सिंह ने बताया कि अभी तक 10 बच्चों को उनकी माताओं को सौंपा जा चुका है. मुस्लिमों में यतीम उसे माना जाता है, जिनके पिता नहीं हैं. ऐसे में बच्चे ही यहां रह रहे थे. सभी 28 बच्चों को उनकी माताओं को सौंपे जाएंगे.

ये है पूरा मामला
1894 में स्थापित मुस्लिम ऑर्फिनेज, कानपुर (मुस्लिम यतीमखाना) आखिर आपसी विवाद की भेंट चढ़ गया. फिलहाल वजह इसकी किशोर न्याय अधिनियम 2015 है, जिसे जेजे एक्ट के नाम से जाना जाता है. इसके लिए वर्ष-2022 से दबाव डाला जा रहा था, लेकिन इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया. जब आपसी विवाद हुआ तो 50 से अधिक शिकायतें यतीमखाना व इसकी संपत्ति को लेकर हुईं. इनमें कई जांचें जारी हैं.

कुल 42 बच्चे रहते हैं
करोड़ों की संपत्ति वाले इस मुस्लिम यतीमखाना का संचालन अंजुमन यतीमखाना इस्लामिया करती है. शहर की यह इकलौती मुस्लिम संस्था है, जिसकी सदस्यता को लेकर मुस्लिम समुदाय में समाज के विशेषकर उच्च वर्ग के लोग काफी गंभीर रहते हैं. वर्तमान में यहां 42 बच्चे हैं. इसके विपरीत अंजुमन यतीमखाना इस्लामिया में सदस्यों की संख्या 90 है. इनमें कई डॉक्टर, पूर्व विधायक आदि हैं.

सरकार से आर्थिक मदद नहीं लेती है संस्था
यतीमखाना सरकार से आर्थिक मदद नहीं लेता है. इसे अपनी संपत्तियों जैसे गुलशन हॉल, जुबली स्कूल व अन्य संपत्तियों के किराए के अलावा जकात, फितरा, फिदया व अन्य दान से करोड़ों मिलते रहे हैं. गुलशन हॉल शादी आदि में किराए पर उठाया जाता है, लेकिन जीएसटी आदि में पंजीकरण नहीं है.

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