ABC NEWS: काशी के महाश्मशान पर साढ़े तीन सौ साल पुरानी परंपरा का निर्वहन मंगलवार की रात किया गया. जलती चिताओं के सामने ही स्टेज सजा और नगर वधुओं ने नृत्य और गीतों से बाबा मसाननाथ को से आस्था अर्पित की. वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि पर बाबा के पूजन के बाद शुरू हुआ राग-विराग का मेला देर रात तक चलता रहा. नगरवधुएं भावविभोर हो कर नृत्यांजलि प्रस्तुत करती रहीं. रात के सन्नाटे को भेदती गीत-संगीत की गूंज दूर तक कई घाटों पर सुनाई देती रही.
क्या है परंपरा
करीब साढ़े तीन सौ साल पहले राजा मानसिंह ने प्राचीन नगरी काशी में बाबा मसाननाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. इस मौके पर वह सांस्कृतिक कार्यक्रम कराना चाहते थे लेकिन काशी का कोई कलाकार तैयार नहीं हुआ.
तब नगरवधुओं के आग्रह पर राजा मानसिंह ने उन्हें आमंत्रित किया. तब से मणिकर्णिका घाट पर इस उत्सव की शुरूआत हुई. माना जाता है कि इस दौरान नगरवधुएं नारकीय जीवन के उद्धार के लिए गुहार लगाती हैं.
तीन दिवसीय श्रृंगार के अंतिम दिन आयोजन
उत्तरवाहिनी गंगा का तट। चिता की ऊंची लपटें. पंचतत्व में विलीन होते नश्वर शरीर। राख में तब्दील सांसारिक भ्रम. ये सभी जीवन के सत्य को दर्शा रहे थे. वहीं देवाधिदेव को समर्पित घुंघरू की झनकार अगली बार ऐसा जन्म न देने की करुण गुहार कर रही थी. लग रहा था मानों दुनियावी राग नुपुरों की झनकार पार कर वैराग की ओर जाना चाहती हो.
कुछ ऐसा ही मंजर था मंगलवार को महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर. अवसर था बाबा श्मशाननाथ के तीन दिनी शृंगार का. समापन निशा में नगरवधुओं की मनुहार बाबा तक पहुंची या नहीं, इसका प्रमाण तो नहीं मिला लेकिन सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को निभाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी.
बाबा महाश्मशान सेवा समिति के अध्यक्ष चैनु प्रसाद गुप्ता ने बताया कि रात्रि में नृत्यांजलि की परंपरा से पूर्व शाम को बाबा महाश्मशान नाथ का तांत्रिक विधि से पंचमकार पूजन किया गया. पं. सुनील पाठक के आचार्यत्व में पांच ब्राह्मणों ने विधान पूरा कराया. कार्यक्रम का संयोजन महाश्मशान सेवा समिति के अध्यक्ष के अलावा उपाध्यक्ष संजय गुप्ता, महामंत्री बिहारी लाल, व्यवस्थापक गुलशन कपूर, राजू साव, अजय उर्फ अज्जू, नीरज गुप्ता ने किया.