ABC NEWS: लखीमपुर के औरंगाबाद में मैगलगंज इलाके के चार गांवों के लोग पिछले कई महीनों से भालू बनकर घूम रहे हैं. हजारों रुपये लगाकर लोग भालू की पोशाक लेकर आए हैं. गांव के लोग बारी-बारी से यह पोशाक पहनकर खेतों, पगडंडियों पर दिन भर घूमते रहते हैं. भालू की पोशाक पहने लोगों को घूमते देख लोग भी दंग रह जाते हैं. सुनने में भले ही अटपटा लग रहा हो लेकिन यह सही है. गांव के लोग कोई नाटक नहीं कर रहे हैं बल्कि बंदरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए भालू की पोशाक पहनकर घूम रहे हैं.
जिले के फरिया, पिपरिया, जहाननगर व ढखौरा क्षेत्र में इन दिनों बंदरों का उत्पात ज्यादा है. सैकड़ों की संख्या में यहां मौजूद बंदर लोगों को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं. खेतों में ताजी बोई फसलें बर्बाद कर देते हैं. सब्जियों की फसलें तोड़ डालते हैं. इतना ही नहीं गन्ना की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं. गन्ना की फसल खेतों में उगते ही बंदरों का झुंड पहुंचकर तोड़ देता है. गांव वाले बंदरों को भगाने पहुंचते हैं तो बंदर हमलावर हो जाते हैं.
घरों में भी बंदर पहुंचकर नुकसान पहुंचाते हैं. कई बार बच्चों को काट भी चुके हैं. बंदरों और जंगली सुअरों से बचाव के लिए किसानों ने नई तरकीब निकाली. अब किसान भालू की पोशाक पहनकर खेतों में घूमते हैं. किसानों का कहना है कि भालू जानकर बंदर व जंगली जानवर भाग जाते हैं.
बारी-बारी से पोशाक पहनते हैं लोग
फरिया पिपरिया के अंकित शुक्ला ने बताया कि बंदरों से फसलों को बचाने के लिए पांच हजार में भालू की पोशाक खरीदी. ढखौरा गांव में रहने वाले विनय सिंह भी पोषाक खरीदकर लाए. इसके बाद कई और लोग यह पोषाक लाए हैं. पहले एक-दो लोगों ने पोशाक पहनकर खेतों की रखवाली की. भालू समझकर बंदर व जंगली सुअर खेतों से भाग जाते हैं. इससे गांव वालों को उम्मीद है कि अब उनकी फसल बच जाएगी.
लोग बताते हैं कि फरिया पिपरिया आदि गांवों के किसान फसलों को बचाने के लिए यह पोशाक पहनते हैं. सभी के खेतों की रखवाली करनी है. ऐसे में गांव वालों ने आपस में तय कर लिया कि किस दिन कौन यह पोशाक पहनकर खेतों में घूमेगा. जिस दिन जिसकी बारी आती है उस दिन वह भालू की पोशाक पहनकर खेतों में दिन भर घूमता है और शाम को जमा कर देते हैं.
वन विभाग भी हैरान, परेशान
गांव वालों का कहना है कि अचानक से बंदर कहां से आ गए, इसकी जांच हो. उधर, वन विभाग के दरोगा धनीराम वर्मा का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र की क्या बात करूं, मैगलगंज पौधशाला में बंदरों का भी इतनी शरारत है कि हम लोग पेड़ नहीं बचा पाए रहे हैं जबकि हम लोगों ने कई बार हवाई फायरिंग व पटाखा का भी उपयोग कर चुके हैं. फिर बंदर नहीं भाग रहे.