ABC NEWS: तमिलनाडु से निकली राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत कई राज्यों से गुजरते हुए अब दिल्ली पहुंच कर विश्राम कर रही है. अगले चरण की शुरुआत में ही 3 जनवरी को यह यात्रा यूपी में प्रवेश करने वाली है. इसके लिए राज्य के प्रमुख विपक्षी दलों सपा और बसपा को कांग्रेस ने आमंत्रित भी किया है, लेकिन अब तक दोनों दलों ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया है. सपा और बसपा के सूत्रों ने अखिलेश यादव या फिर मायावती के इस यात्रा में शामिल होने की बात से इनकार किया है. यह भी साफ नहीं है कि दोनों दल राहुल गांधी की यात्रा में अपने किसी प्रतिनिधि को भेजेंगे या नहीं.
पश्चिम यूपी में जनाधार रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल को भी निमंत्रण दिया गया है, लेकिन जयंत चौधरी की ओर से भी कोई जवाब अब तक नहीं आया है. ऐसे में सवाल यह है कि सपा और बसपा आखिर राहुल गांधी के साथ खड़े क्यों नहीं दिखना चाहते. सपा के सूत्रों का कहना है कि हम भारत जोड़ो यात्रा के उद्देश्य के साथ हैं और इस वक्त ऐसे अभियान की जरूरत भी है लेकिन हमारी पार्टी इस यात्रा में साथ नहीं दिखना चाहती. इसकी वजह यह है कि यूपी में फिलहाल लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की स्थिति नहीं है और यदि ऐसा किया भी जाए तो सपा को फायदा नहीं होगा.
2017 का सबक अब तक है सपा को याद?
ऐसी स्थिति में सपा कांग्रेस के साथ नहीं दिखना चाहती क्योंकि अखिलेश यादव के साथ जाने पर राजनीतिक गठबंधन के कयास लगने लगेंगे. दरअसल भाजपा लगातार यह आरोप भी लगाती रही है कि ये सभी दल एक ही हैं. बीते चुनाव में भी सपा, बसपा और कांग्रेस के साथ रहने पर पीएम नरेंद्र मोदी ने तीनों दलों पर खूब तंज कसा था. उसका खामियाजा भी पार्टी भुगतना पड़ा था. 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था और उसे 100 सीटें दी थीं. इन 100 में से कांग्रेस महज 7 सीटों पर ही जीत पाई थी. वहीं सपा भी 50 के करीब ही अटक गई थी. फिर भी कांग्रेस को दी गई 100 सीटों को करारी हार की वजह माना गया था.
कांग्रेस से अलग रहने में ही क्यों भलाई समझ रही सपा
यही वजह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस जैसी पार्टी की बजाय छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इसका उसे फायदा भी हुआ और उसे 111 सीटों पर जीत मिली. सपा गठबंधन कुल 125 सीटों पर जीत कर आया. इस तरह उसकी सीटों में तीन गुना का इजाफा हुआ. यही वजह है कि सपा कांग्रेस के साथ चलने की बजाय उससे अलग रहने में ही अपना हित समझ रही है. वैचारिक तौर पर भले ही सपा उसका साथ देने की बात कर रही है, लेकिन उसके साथ खड़ी नहीं दिखना चाहती. ऐसी ही स्थिति मायावती की है, जो कांग्रेस से जुड़ने में अपना कोई हित नहीं देखतीं, जिस पर वह एक दौर में दलित विरोधी होने के आरोप भी लगाती रही हैं.