ABC NEWS: UP के निकाय चुनाव में बीजेपी का परचम लहराया है, लेकिन इस बार जो सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई है वो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की है. ये धीरे-धीरे जमीन तलाशती जा रही है, जोकि समाजवादी पार्टी यानी सपा के लिए भविष्य में एक बुरे सपने की तरह साबित हो सकता है क्योंकि मुस्लिम वोटर हैदराबाद के सांसद ओवैसी पर भरोसा जताने लगा है. यही वजह है मेरठ नगर निगम के मेयर चुनाव के लिए AIMIM ने मोहम्मद अनस पर भरोसा जताया था और उस भरोसे पर वह कहीं न कहीं खरे उतरे हैं. भले ही बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल कर ली पर अनस नबंर दो के पायदान पर काबिज हो गए.
इस बार यूपी निकाय चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने 17 में से 10 नगर निगमों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए थे. ये सभी उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से थे. ओवैसी ने मेरठ से मोहम्मद अनस, गाजियाबाद से शहनाज मलिक, अलीगढ़ से गुफान नूर, मथुरा से मोहम्मद आरिफ, बरेली से सरताज अल्वी, मुरादाबाद से मुस्तुजाब अंसारी, कानपुर से शहाना परवीन नियाजी, अयोध्या से रेहान सिद्दीकी, प्रयागराज से नकी खान और गोरखपुर से कैश अंसारी को टिकट दिया था.
हाथरस जिले में नगर पालिका चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने BJP प्रत्याशी को चुनाव हराया है. पार्टी का यूपी में खाता खुल गया है. सिकंदराराऊ नगर पालिका से एआईएमआईएम पार्टी के उम्मीदवार मुशीर कुरैशी से बीजेपी के पंकज गुप्ता को हार गए हैं. एआईएमआईएम ने बीजेपी को 2478 मतों से हराया. कुरैशी को 9137 मत मिले, जबकि बीजेपी को 6659 मत मिले.
उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव से औवेसी के निशाने पर लगातार सपा और कांग्रेस रही है क्योंकि मुस्लिम वोट इन्हीं पार्टियों के बीच बंटे हुए हैं. उन्होंने अक्सर रैलियों में बोला है कि मुसलमान अब अखिलेश यादव की पार्टी सपा के लिए दरी बिछाना बंद कर दें और अपनी आवाज बुलंद करके एक बेहतर विकल्प AIMIM की ओर देखें जो उनका कल्याण के लिए काम करेगा. औवेसी ने जिस वोट के लिए पसीना बहाया है वो अब उनकी बातों को पसंद करने लगा है. राजनीति जगत के जानकारों का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वह यूपी में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं और इसका फायदा बीजेपी को पहुंच सकता है.
साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी को लेकर कहा गया कि उनकी पार्टी हिंदी राज्य में अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रही. इसके बाद ओवैसी ने 2017 की तुलना में उत्तर प्रदेश में लगभग तीन गुना अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा और फिर से राज्य में अपना खाता खोलने में विफल रही. उसे 2017 में 38 सीटों पर लगभग 2 लाख वोट मिले थे, जोकि टोटल वोट शेयर का लगभग 0.2 फीसदी था. इस बार उसने 97 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसके वोट फीसद में इजाफा हुआ. भले उसने खाता न खोला पर वोट शेयर बढ़कर 0.46 प्रतिशत हो गया.
ओवैसी ने यूपी चुनावों के लिए बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी और भारत मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन किया था. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, एआईएमआईएम ने यूपी विधानसभा चुनाव में मोटे तौर पर 3.4 लाख वोट हासिल किए. इसके बाद भी कहा गया औवैसी मुस्लिम वोटर्स को रिझाने में नाकाम रहे, लेकिन पार्टी कछुए की चाल से अपना दायरा बढ़ाती जा रही है, जोकि एक नई चुनौती बनकर उभर रही है. उन पर आरोप लगते आए हैं कि वह बीजेपी की बी टीम की तरह काम करते हैं, जिसका फायदा भगवा पार्टी को होता है.