ABC News: देश में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू कर दी. इस विषय पर सभी पक्ष कोर्ट में अपनी दलीलें दे रहे हैं. इस दौरान मामले की सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, बीते 5 सालों में चीजें बदली हैं, और लोगों में समलैंगिकता को लेकर स्वीकार्यता बढ़ी है.
सुनवाई शुरू होने से पहले जमीयत उलेमा ए हिन्द के वकील कपिल सिब्बल ने इस मामले पर राज्यों का भी पक्ष सुने जाने का सुझाव दिया. केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, हम सुनवाई का विरोध कर रहे हैं, पहले हमारी आपत्ति पर विचार हो. यह विषय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है, कोर्ट शादी की नई व्यवस्था नहीं बना सकता है. चीफ जस्टिस ने जवाब दिया- हमें पहले याचिकाकर्ताओं को सुनने दीजिए. आप अपनी बात बाद में रख सकते हैं. तुषार मेहता ने कहा कि पहले हमारी आपत्ति पर विचार करना बेहतर होगा, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से सुनवाई में मौजूद कपिल सिब्बल ने भी मेहता की बात का समर्थन करते हुए कहा, यह मामला पर्सनल लॉ से भी जुड़ा है. पर्सनल लॉ से जुड़ी व्यवस्थाएं इससे प्रभावित होंगी. तुषार मेहता बोले कि किसी भी याचिकाकर्ता को सुनने से पहले मेरी शुरुआती आपत्ति को सुनिए. मैं अभी केस के मेरिट पर कुछ नहीं बोलूंगा. सिर्फ इस पर बात करूंगा कि सुनवाई हो या नहीं. सीजेआई ने कहा कि हमें तय करने दीजिए कि सुनवाई कैसे होगी. हम शुरू में याचिकाकर्ता पक्ष को थोड़ी देर सुनना चाहते हैं. तुषार मेहता बोले कि फिर मुझे समय दीजिए. सरकार तय करेगी कि उसको कितना हिस्सा लेना है और क्या कहना है? तुषार मेहता- 5 लोग चाहे जितने विद्वान हों, मिल कर तय नहीं कर सकते कि दक्षिण भारत का एक किसान, पूर्वी भारत का एक व्यापारी इस पर क्या सोचता है? याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, हमें कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से नहीं रोका जा सकता. मुझे अपनी बात रखने दीजिए. याचिकाकर्ता पक्ष के दूसरे वकील विश्वनाथन ने तर्क दिया, हम इसे संसद पर नहीं छोड़ सकते ये मौलिक अधिकारों का मामला है.