ABC NEWS: शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा करने का विधान है. इस दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप की पूजा की जाती है. मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इनको अष्टभुजा देवी भी कहते हैं. ये अपनी आठ भुजाओं में चक्र, गदा, धनुष, बाण, अमृत कलश, कमल और कमंडल धारण करती हैं. मां कूष्मांडा का वाहन सिंह है, जो साहस और निर्भय का प्रतीक है. ये
देवी अपने एक हाथ में जप की माला भी धारण करती हैं. मां कूष्मांडा के नाम का अर्थ कुम्हड़ा है. इसे संस्कृत में कूष्मांडा कहते हैं. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डाॅ. कृष्ण कुमार भार्गव से जानते हैं मां कूष्मांडा की कथा.
मां कूष्मांडा की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब चारों ओर घनघोर अंधेरा था, तब मां कूष्मांडा ने अपनी हल्की हंसी से इस ब्रह्मांड की रचना की, जिसकी वजह से उनका नाम कूष्मांडा पड़ा. इस देवी को आदिशक्ति भी कहा गया है. इनके अंदर इतना तेज है कि वे ही सूर्यमंडल के अंदर निवास कर सकती है. सूर्य मंडल का अंतःस्थल ही देवी का वास है. इस सृष्टि में जो भी प्रकाशित या तेजवान है, वे सभी इस मां कूष्मांडा के तेज से ही आलोकित होते हैं.
मां कूष्मांडा के नाम का अर्थ
त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है, वे भगवती कूष्मांडा कहलाती हैं. कूष्मांडा का अर्थ कुम्हड़े से भी है. मां कूष्मांडा को कुम्हड़ा अति प्रिय है, इसलिए भी इनको कूष्मांडा कहते हैं. हालांकि बृहद रूप में देखा जाए तो एक कुम्हड़े में अनेक बीज होते हैं, हर बीज में एक पौधे को जन्म देने की क्षमता होती है. उसके अंदर सृजन की शक्ति होती है. मां ने इस पूरे ब्रह्मांड की रचना की है. उनके अंदर भी सृजन की शक्ति है.
मां कूष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली॥ कूष्मांडा जय…
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥ कूष्मांडा जय…
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥ कूष्मांडा जय…
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥ कूष्मांडा जय…
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥ कूष्मांडा जय…