कब है गंगा दशहरा? क्यों देवी गंगा ने अपने 7 पुत्रों को नदी में बहाया,जानें पौराणिक कथा

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ABC NEWS: सनातन धर्म में गंगा नदी को देवी का स्थान प्राप्त है. गंगा नदी की गिनती उन पवित्र नदियों में की जाती है, जिन्हें पूजा जाता है और जिनके जल का उपयोग मांगलिक कार्य और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है. गंगा दशहरा वो पर्व है जब मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर माना जाता है. गंगा दशहरा हर वर्ष जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशहरा तिथि पर मनाया जाता है. इस बार गंगा दशहरा 30 मई 2023 को मनाया जा रहा है. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से कि आखिर क्यों गंगा मां ने अपनी 7 संतानों को नदी में बहा दिया था से जुड़ी रोचक कहानी.

अपनी संतानों को क्यों बहाया नदी में

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा शांतनु मां गंगा से प्रेम करते थे और उनसे विवाह करना चाहते थे. यह बात जानकर मां गंगा उनसे विवाह करने के लिए राजी हो गईं, परंतु उन्होंने इसके लिए एक शर्त रखी की राजा शांतनु उन्हें किसी भी बात के लिए रोकेंगे-टोकेंगे नहीं. वे मां गंगा से प्रेम करते थे तो उन्होंने उनकी इस शर्त को मान लिया कभी ना रोकने टोकने का वचन दिया पर उनको दिया ये वचन राजा शांतनु के लिए बड़ी आफत बन गई.

विवाह के बाद जब देवी गंगा गर्भवती हुई. वे जन्म के बाद अपनी हर संतान को नदी में बहा देती थीं. इस क्रम में देवी गंगा ने अपने सात पुत्रों को नदी में बहा कर उनकी हत्या कर दी, क्योंकि राजा शांतनु ने देवी गंगा को वचन दिया था कि वे उनसे कभी कोई प्रश्न नहीं करेंगे. इस वचन के चलते वे अकेले में तड़पते, रोते और देवी गंगा से किसी तरह का कोई सवाल नहीं कर पाते.

8वीं संतान पर पूछा प्रश्न

जब देवी गंगा ने आठवें पुत्र को जन्म दिया और वे उसे नदी में बहाने जा ही रही थी कि पीछे से शांतनु ने आकर उन्हें रोक लिया और कहा कि मैं यह सहन नहीं कर पाऊंगा. तब देवी गंगा ने उन्हें कोई भी प्रश्न ना पूछने का वचन याद दिलाया. राजा ने कहा उस समय मैं राजा था, लेकिन अभी मैं एक पिता के हक से यह सवाल करता हूं कि तुम बार-बार मेरे पुत्रों की इस तरह हत्या क्यों कर रही हो?

देवी गंगा ने बताई वजह

देवी गंगा ने बताया कि मैं अपने पुत्रों की हत्या नहीं, बल्कि उन को श्राप मुक्त कर रही हूं. मैं स्वर्ग में रहने वाली ब्रह्मपुत्री आपके साथ धरती पर एक श्राप के साथ रह रही हूं. उन्होंने आगे बताया कि पिछले जन्म में महाराज महाभिषेक थे जो इंद्रलोक आए थे. तभी मैं पिता के साथ वहां पहुंची थी. महाराज महाभिषेक मेरी सुंदरता को देखकर मोहित हो गए थे और मैं भी उनमें खो गई थी. यह देखकर ब्रह्मदेव को क्रोध आ गया और उन्होंने हम दोनों को मनुष्य रूप में जन्म लेने के लिए श्राप दिया.

यह जानकर शांतनु ने कहा क्या हमारी सभी संताने उसी श्राप का हिस्सा हैं

तो देवी गंगा ने कहा कि नहीं आपकी आठों संतान तो वसु हैं. वरिष्ठ ऋषि की गाय को चुराने पर ऋषि ने उन्हें धरती पर जन्म लेने के लिए श्राप दिया था. उस समय मैंने ऋषि को यह वचन दिया था कि मैं अपनी कोख से इन्हें जन्म दूंगी और उसके बाद मृत्यु लोक से उन्हें मोक्ष प्राप्त करवांउगी परंतु आज आपने आठवीं संतान को मृत्यु से बचाया है, जिसे अब पृथ्वी पर रह कर ही इस श्राप को भुगतना होगा. इस आठवीं संतान की उस चोरी में महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.

गंगा और शांतनु के आठवें पुत्र भीष्म पितामह थे

देवी गंगा राजा शांतनु के आठवें पुत्र देवव्रत थे, जो अपनी प्रतिज्ञा के कारण भीष्म पितामह के रूप में जाने गए. भीष्म पितामह को किसी भी तरह के सांसारिक सुख प्राप्त नहीं हुए. उन्हें अपने जीवन से लेकर मृत्यु तक अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा.

प्रस्तुति- भूपेंद्र तिवारी

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