हार-हार के बाद भी सपा को जीत की नई उम्मीद, मिशन 2024 के लिए नई रणनीति की तलाश

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ABC NEWS: समाजवादी पार्टी ताजा हार से सकते में हैं, लेकिन उसे इस बात की खुशी भी है कि भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक में सत्ता से बाहर हो गई. सपा को यूपी में जीत की छोटी-छोटी खुशियां लोकसभा व विधानसभा उपचुनाव के रूप में मिलती रहीं हैं लेकिन बड़े चुनावी इम्तहान में उसकी सारी कोशिशें परवान नहीं चढ़ पातीं.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कर्नाटक चुनाव में भाजपा की हार तंज करते हुए ट्वीट किया. कहा कि कर्नाटक का संदेश ये है कि भाजपा की नकारात्मक, सांप्रदायिक, भ्रष्टाचारी, अमीरोन्मुखी, महिला-युवा विरोधी, सामाजिक-बँटवारे, झूठे प्रचारवाली, व्यक्तिवादी राजनीति का ‘अंतकाल’ शुरू हो गया है. ये नये सकारात्मक भारत का महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार व वैमनस्य के ख़िलाफ़ सख़्त जनादेश है.

छोटी छोटी जीत, लेकिन बड़ी बड़ी हार 
मुलायम सिंह यादव के न रहने पर सहानुभूति के ज्वार के चलते सपा मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव जीत गई. इससे पहले सपा ने वर्ष 2018 गोरखपुर व फूलपुर उपचुनाव में भाजपा से यह सीटें छीन लीं. पर इन छोटी-छोटी कामयाबियों से सपा को अगली परीक्षा में जीत की उम्मीद बंधती रही है और बड़ी हार से उबरने का मौका भी.

अखिलेश को सत्ता में आने के बाद पहला झटका 2014 में 
अखिलेश सरकार के रहते सपा 2014 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरी तो उसकी पांच सीटें आईं. माना गया कि यह सरकार के खराब कामकाज का नतीजा है. 2017 का विधानसभा चुनाव में सपा सत्ता से ही बाहर हो गईं. इसके निकाय चुनाव हुए तो उसमें भी मेयर सीट पर खाता तक नहीं खुला. अगली परीक्षा 2019 के लोकसभा चुनाव की थी. तब बसपा के साथ गठजोड़ किया लेकिन सीटें पांच ही रहीं. अलबत्ता 2022 के चुनाव में सपा को गठजोड़ कर व जातीय समीकरणों को साध कर पूरी ताकत लगा दी. सरकार तो नहीं बनी लेकिन सीटें दुगनी से ज्यादा हो गईं. इसने सपा में नया जोश भरा.

मिशन 2024 के लिए सपा अब नई रणनीति की तलाश में 
अब सपा के आगे की चुनौतियां विकट हैं। मायूस कार्यकर्ताओं को उत्साहित करते हुए अगली लड़ाई के लिए जोश भरना है. सपा की अब सारी उम्मीदें लोकसभा चुनाव पर हैं. यहां उसका प्रदर्शन उसे राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती देगा तो वहीं खराब प्रदर्शन से सपा को अगली लड़ाई के लिए तैयार करना भी खासा मुश्किल होगा. लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले सपा जातीय जनगणना, आरक्षण व गठजोड़ कर सोशल इंजीनियरिंग को साधने के काम में काफी समय से लगी है. पर इस ताजा नतीजों  के चलते उसके समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं.

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