ABC NEWS: इस वर्ष 22 जनवरी को अयोध्या जन्मभूमि में भगवान श्री राम के भव्य राम मंदिर का उद्घाटन होगा. इस दिन श्री राम के 5 वर्षीय बाल स्वरूप में अपने भक्तों को दर्शन देंगे. इस दिन को और अधिक भव्य बनाने के लिए प्रशासन, साधु-संतों के साथ-साथ युवा भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. बता दें कि भारतवर्ष में प्रभु श्री राम को समर्पित तीर्थ स्थलों के दर्शन होते हैं. इनमें से कई तीर्थस्थलों का उल्लेख रामायण कथा से जुड़ता है और कुछ तीर्थ स्थलों को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष स्थान प्राप्त है. इन्हीं में से एक है, हिमाचल के बीजापुर में स्थापित सीताराम जी मंदिर, जिससे जुड़ी कई कथाएं प्रचलित है. श्री राम विराजमान के इस भाग में हम बात करेंगे, बीजापुर गांव में स्थापित सीताराम मंदिर के इतिहास की और इससे जुड़े कुछ रोचक बातों को भी जानने का प्रयास करेंगे.
जब राजा के सपने में आए थे स्वयं प्रभु श्री राम
जयसिंहपुर के बीजापुर गांव में स्थापित सीताराम मंदिर के इतिहास के विषय में अगर बात करें तो बीजापुर गांव को राजा विजय चंद ने 1660 ईस्वी में बसाया था. वहीं मंदिर का निर्माण कार्य 1690 में करवाया गया. जब मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ, तब राजा विजय चंद ने अपने मंत्रियों से सवाल किया कि मंदिर में श्री राम और माता जानकी की मूर्तियों को कहां से लाकर स्थापित किया जाए. तब उन्हें काथला गांव के नजदीक व्यास नदी की गहराई में श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी की मूर्ति होने का स्वप्न आया. जब राजा ने अपने सैनिकों को इन मूर्तियों का सच जानने के लिए व्यास नदी में भेजा तो यह बात सच निकली, लेकिन सैनिक उन मूर्तियों को उठा भी ना सके.
इसके पश्चात राजा को एक और सपना आया, जिसमें कहा गया कि राजा स्वयं उन मूर्तियों को लाने जाएं. इसके अगले दिन राजा अपने सैनिकों के साथ स्वयं वहां गए और गाजे-बाजे के साथ उन मूर्तियों को मंदिर में लेकर आए. इसके पश्चात मंत्र उच्चारण के साथ मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई. कहा यह भी जाता है कि राजा को प्राण प्रतिष्ठा पर विश्वास नहीं हुआ और वह भगवान श्री राम की मूर्तियों के आगे बैठ गए. इस दौरान उन्होंने यह प्रार्थना की उन्हें यह विश्वास दिलाया जाए कि सच में इन मूर्तियों में श्री राम स्वयं निवास करते हैं. अगले दिन जब सुबह उठकर राजा पुनः स्नान ध्यान कर मंदिर में पूजा करने के लिए आए और प्रभु श्री राम के मूर्ति को अपने हाथों से स्पर्श किया, तो उन्हें यह आभास हुआ कि श्री राम की प्रतिमा ने दो बार श्वास लिया है. इसके बाद उन्हें यह सुनिश्चित हो गया कि प्रभु श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा सफल हुई है.
कई बार इस मंदिर पर हो चुका है आक्रांताओं का हमला
इतिहासकार बताते हैं कि पूर्व में भगवान श्री राम के इस मंदिर पर कई बार मुगलों ने आक्रमण किया और इस मंदिर में रखे गए सोने व चांदी को लूट लिया. बता दें कि राजा ने प्रभु श्री राम की प्रतिमा के ठीक सामने हनुमान जी की प्रतिमा को भी स्थापित किया था, जिनके बाजू में सोने का बाजूबंद था. आक्रमण के दौरान बाजूबंद को पाने के प्रयास में उन आक्रांताओं ने हनुमान जी की मूर्ति का एक हाथ काट दिया. इसके बाद हनुमान जी की प्रतिमा के नाक और कान से मधुमक्खी जिन्हें स्थानीय भाषा में रंगड़ भी कहा जाता है, का झुंड निकला और उन्होंने यहां आए सभी आक्रांताओं का सफाया कर दिया. इसलिए कहा जाता है कि उस समय स्वयं हनुमान जी इस मंदिर की रक्षा के लिए आए थे. इस तीर्थ स्थान से जुड़ी यह मान्यता भी प्रचलित है कि यदि किसी का शिशु बीमार रहता है, तब उन बच्चों को मां दुर्गा के चरणों में रखने से और उन्हें द्रव्य अर्पित कर बच्चों को वापस लेने से, उनकी सभी तकलीफें दूर हो जाती है.