घरेलू पिच पर ‘माहिर बल्लेबाज’ साबित हुए मल्लिकार्जुन खड़गे, फेल हुआ बीजेपी का हर दांव

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ABC NEWS: जैसा अनुमान था, वैसा ही हो रहा है. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनती नजर आ रही है. अब तक के रूझानों में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है. वहीं, बीजेपी 65 से भी कम सीटों पर सिमटती दिख रही है.

अगर ये रूझान नतीजों में बदलते हैं तो कांग्रेस के लिए ये बड़ी राहत होगी. कांग्रेस के लिए खुश होने की दूसरी बात एक ये भी है कि उसका वोट शेयर भी काफी बढ़ता दिख रहा है. 2018 में कांग्रेस का वोट शेयर 38 फीसदी के आसपास था, जो इस बार 43 फीसदी से ज्यादा होने की उम्मीद है.

हालांकि, ये चुनाव कांग्रेस से ज्यादा उसके अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए काफी अहम था. उसकी वजह ये कि कर्नाटक खड़गे का गृहराज्य है. और गृहराज्य होने के नाते चुनाव में पार्टी का जीतना और भी ज्यादा अहम हो जाता है.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने पिछले साल 26 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष पद की शपथ ली थी. उसके बाद से कर्नाटक छठा राज्य है जहां विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. कर्नाटक से पहले गुजरात, हिमाचल, त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में चुनाव हो चुके हैं. और इन पांच में से हिमाचल को छोड़कर कांग्रेस किसी भी राज्य में बहुत खास कमाल नहीं कर सकी. अब कर्नाटक में कांग्रेस जीत रही है.

खड़गे का कितना कमाल?
मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद जिन छह राज्यों में चुनाव हुए, उनमें पार्टी हिमाचल जीत चुकी है और कर्नाटक जीतने जा रही है. इस हिसाब से खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद हुए चुनावों में से कांग्रेस ने दो में जीत और चार में हार झेली है.

कर्नाटक में कांग्रेस की रिकॉर्ड जीत
कर्नाटक के चुनावी इतिहास में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ये दूसरा सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है. इससे पहले 1989 के चुनाव में कांग्रेस ने 178 सीटों पर जीत हासिल की थी. उस चुनाव में कांग्रेस को करीब 43.7% वोट मिले थे.

34 साल बाद कांग्रेस फिर से रिकॉर्ड तोड़ जीत रही है. चुनाव आयोग के मुताबिक, कांग्रेस 136 सीटों पर आगे चल रही है. इनमें से 80 सीटें तो वो जीत भी चुकी है. अब तक कांग्रेस का वोट शेयर 43.2% है.

कांग्रेस का तीसरा सबसे अच्छा प्रदर्शन 1999 के चुनाव में था. तब पार्टी ने करीब 41 फीसदी वोट शेयर के साथ 132 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2004 में 65, 2008 में 80, 2013 में 122 और 2018 में 79 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

इतना ही नहीं, इस बार कांग्रेस ने एक और रिकॉर्ड भी बना दिया है. 34 साल बाद कर्नाटक में किसी पार्टी को इतनी ज्यादा सीटें मिली हैं.

क्या ये खड़गे का कमाल है?
पिछले साल जब कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम सामने आया, तभी से इसे कर्नाटक चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा था.

उसकी कई सारी वाजिब वजहें भी थीं. पहली वजह तो यही थी कि खड़गे खुद कर्नाटक से आते हैं. 21 जुलाई 1942 को कर्नाटक के बीदर जिले में उनका जन्म हुआ. गुलबर्ग के नूतन स्कूल से पढ़ाई की. वहीं के सरकारी कॉलेज से कानून की डिग्री ली. वकालत की प्रैक्टिस के दौरान ही मजदूरों के हक के कई मुकदमे लड़े.

बीते साल जब राहुल गांधी से पूछा गया कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन होगा? तो उन्होंने जवाब दिया था, ‘अगला कांग्रेस अध्यक्ष कोई भी बने, बस उसे ये याद रखना चाहिए कि आप विचारों के समूह, विश्वास प्रणाली और भारत के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं.’

राहुल गांधी ने जो कहा था, खड़गे उसमें एकदम फिट बैठते हैं. खड़गे एक ‘कट्टर कांग्रेसी’ हैं, जो जमीनी स्तर से उठकर संगठन में उभरकर सामने आए हैं. 1969 में वो गुलबर्ग कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने और अलग-अलग स्तरों पर संगठन के लिए काम किया.

पिछले साल ही राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने इस बात का संदेश दे दिया था कि कर्नाटक कांग्रेस के लिए अहम राज्य है, क्योंकि यहां यात्रा की सबसे लंबी अवधि थी. इसके अलावा खड़गे के जरिए पार्टी ने ये संदेश देने की कोशिश भी की थी कि उसके लिए दलित मायने रखते हैं और कर्नाटक भी मायने रखता है.

हाल ही में खड़गे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद को कर्नाटक का ‘भूमि पुत्र’ भी बताया था. साथ ही ये भी कहा था कि कर्नाटक की जनता को इस बात पर गर्व कर सकती है कि राज्य का ‘भूमि पुत्र’ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष है.

तो क्या कांग्रेस को खड़गे का फायदा मिला?
भले ही खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद हुए चुनावों में से कांग्रेस सिर्फ दो में ही जीत पाई हो, लेकिन कर्नाटक में पार्टी ने रिकॉर्ड बना दिया है. इस बारे में हम ऊपर बता चुके हैं.

कांग्रेस और खासकर खड़गे के लिए ये जीत इसलिए भी और बड़ी हो जाती है, क्योंकि उन्होंने बीजेपी को दक्षिण से बाहर कर दिया है. दक्षिण भारत का कर्नाटक ही एकमात्र राज्य था, जहां बीजेपी सत्ता में थी.

खड़गे के अध्यक्ष बनने का फायदा कांग्रेस को कैसे मिला? इसे कुछ आंकड़ों से समझ सकते हैं. खड़गे दलित समुदाय से आते हैं. और एग्जिट पोल के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस को दलितों का अच्छा खासा साथ मिला है.

कैसे मिला फायदा?
आजतक-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल में सामने आया था कि बीजेपी अब भी ओबीसी (कुरुबा और वोक्कालिगा शामिल नहीं), मराठा और अगड़ी जातियों के बीच मजबूत है. ये समुदाय राज्य के कुल वोटरों में से लगभग 36 फीसदी है. यही ट्रेंड 2018 में भी था.

दूसरी ओर, इस बार कांग्रेस को कुरुबा, मुस्लिम और दलितों का साथ मिला है. इन तीनों समुदायों की राज्य के कुल वोटरों में करीब 36 फीसदी की हिस्सेदारी है.

करीब दो-तिहाई कुरुबा और मुस्लिमों ने 2018 में कांग्रेस का साथ दिया था और इस बार भी यही ट्रेंड देखने को मिला है. हालांकि, दलितों के बीच कांग्रेस इस बार काफी लोकप्रिय रही. एग्जिट पोल के नतीजों के मुताबिक, कांग्रेस को 2018 में दलितों के 46 फीसदी वोट मिले थे जो इस बार बढ़कर 60 फीसदी के करीब पहुंच गए.

अगर क्षेत्रवार देखा जाए तो कांग्रेस को तटीय कर्नाटक को छोड़कर बाकी सभी पांचों क्षेत्रों में दलितों का साथ मिला है. मध्य कर्नाटक में 53%, बेंगलुरु में 47%, ओल्ड मैसूर में 54%, हैदराबाद कर्नाटक में 56% और मुंबई कर्नाटक में 60% दलितों ने कांग्रेस को वोट दिया है. तटीय कर्नाटक में भी कर्नाटक को 44% दलितों ने वोट दिया है.

सीटों पर कैसे दिखा असर?
माना जा रहा है कि खड़गे के चेहरे पर बड़ी संख्या में दलित वोटर कांग्रेस की तरफ चले गए. बीजेपी इसकी काट नहीं ढूंढ पाई.

ये ठीक उसी तरह था, जिस तरह द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने का फायदा बीजेपी को गुजरात में मिला था. गुजरात चुनाव में बीजेपी ने 27 आदिवासी सीटों पर फोकस करते हुए रणनीति बनाई थी. इसी की वजह से वो 25 सीटें जीतने में कामयाब भी रही.

हालांकि, कर्नाटक चुनाव में बीजेपी के पास खड़गे की काट नहीं थी. नतीजा ये हुआ कि राज्य की 64 एससी सीटों में से कांग्रेस 42 जीतती दिख रही है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस को 43 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर मिलता नजर आ रहा है. वहीं, बीजेपी के पास 12 सीटें ही जाती दिख रहीं हैं.

जबकि, 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने इन्हीं 64 एससी सीटों में से 26 पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी को इनमें से 22 सीटें मिली थीं और जेडीएस के पास 14 सीटें गई थीं.

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