अंततः खुशी दुबे के चेहरे पर दिखीं खुशियां, 30 महीने बाद जेल से बाहर आई

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ABC NEWS: ( भूपेंद्र तिवारी )  कानपुर में विकास दुबे कांड के बाद चर्चा में आई खुशी दुबे शनिवार की शाम जेल से बाहर आ गई. खुशी दुबे को चार जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी. कागजी कार्रवाई की सत्यापन रिपोर्ट नहीं आने के कारण खुशी की रिहाई फंसी हुई थी. सेशन कोर्ट की सख्ती के बाद पुलिस, बैंक और रजिस्ट्री कार्यालय से कागजों की सत्यापन रिपोर्ट आई थी. शनिवार को भी ऐन वक्त पर जमानत के दस्वावेजों में तकनीकी कमी के कारण रिहाई फंसती दिखाई दे रही थी, लेकिन समाधान हो गया और खुशी जेल से बाहर आ गई.

गिरफ्तारी के 927 दिन बाद रिहाई

गिरफ्तारी के 927 दिन बाद शनिवार की देर शाम खुशी ने खुली हवा में सांस ली. माती जेल के बाहर खुशी के पिता और बहन देख भावुक खुशी उनके गले लग रो पड़ी. खुशी के पिता श्याम लाल तिवारी का कहना है कि बेटी को जमानत मिलने से राहत मिली है। न्याय पर पूरा भरोसा है.

मां गायत्री तिवारी ने कहा कि उन्हें मालूम नहीं था कि वह जिस घर में बेटी का ब्याह करने जा रही हैं गैंगस्टर विकास दुबे का परिवार के भतीजे अमर है. अब वह खुशी को कभी बिकरू नहीं जाने देंगी। रिहाई के दौरान भारी फोर्स तैनात रही.

बिकरू कांड से तीन दिन पहले हुई थी शादी

बिकरू गांव में 2 जुलाई 2020 की देर रात विकास दुबे और उसके गुर्गों ने सीओ देवेन्द्र मिश्रा समेत आठ पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था. इस वारदात से तीन दिन पहले ही 29 जून 2020 को खुशी और विकास के गुर्गे अमर दुबे की शादी हुई थी. 5 जुलाई 2020 को पुलिस ने अमर दुबे को एनकाउंटर में मार गिराया था.

4 जुलाई को पुलिस ने खुशी को उठा लिया था. 8 जुलाई 2020 को खुशी दुबे की गिरफ्तारी दिखा कर जेल भेजा गया. वह नाबालिग होने की वजह से उसे पहले सम्प्रेक्षण गृह बाराबंकी में रखा गया. एक साल बाद ही उसके बालिग होने के साथ कोर्ट ने उसे अन्य आरोपितों के साथ माती जिला जेल में ट्रांसफर कर दिया.

खुशी पर यह था आरोप

खुशी दुबे पर आरोप था कि बिकरू कांड के दौरान उसने आरोपितों की को गोलियां पहुंचाई. सीओ देवेन्द्र मिश्रा की लोकेशन हत्यारों को बताने में भी खुशी का हाथ था. पुलिस ने बिकरू कांड की मुख्य एफआईआर में खुशी दुबे को भी गैंगस्टर विकास दुबे के साथ बराबर का आरोपी बनाया था. हत्या, डकैती, पुलिस पर हमला समेत 16 गंभीर धाराओं में पुलिस ने खुशी को अरेस्ट करके जेल भेजा था. उस पर फर्जी कागजातों से बने सिम का इस्तेमाल करने का भी आरोप है.

एडवोकेट शिवाकांत दीक्षित के मुताबिक निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक करीब 95 तारीखों पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने खुशी दुबे को जमानत दी है. लंबी लड़ाई के बाद खुशी रिहा हुई। इस मामले में रिहाई परवाना जेल में शुक्रवार को ही भेज दिया गया था. जमानत में लगाए गए कागजात के सत्यापन में रजिस्ट्री कार्यालय से कमी छोड़ी गई थी. रजिस्ट्री कार्यालय से फिर से जांच के बाद शाम को रिपोर्ट पहुंची. उसके बाद खुशी की रिहाई हुई.

किशोर न्याय बोर्ड में आधे घंटे के लिए अटकी सांसें

किशोर न्याय बोर्ड से शुक्रवार को रिहाई परवाना जेल भेज दिया गया था. हालांकि रजिस्ट्रार की सत्यापन रिपोर्ट अधूरी होने से सेशन कोर्ट का परवाना अटक गया. सत्यापन रिपोर्ट अधूरी होने पर कोर्ट ने नाराजगी जताने के साथ ही रजिस्ट्रार जोन-4 को नोटिस जारी कर प्रपत्र दुरुस्त करने और 23 जनवरी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया था. रजिस्ट्री आफिस से भले सत्यापन की खामी दूरकर शनिवार को रिपोर्ट कोर्ट पहुंच गई लेकिन रजिस्ट्रार को इसके बारे में जवाब देना होगा.

किशोर न्याय बोर्ड में सत्यापन रिपोर्ट के आधार पर जमानत के प्रपत्र मिलान का काम हुआ. रिहाई परवाना बनाने के पहले जेल से वारंट के मिलान की जानकारी की गई तो वहां से धारा 418, 420 का वारंट होने की जानकारी दी गई, जबकि बोर्ड में धारा 419, 420 में मुकदमा चल रहा है. इस पर बोर्ड से विशेष वाहक जेल पहुंचे वहां से वारंट को देखा गया तब पता चला की पढ़ने में त्रुटि के कारण धारा गलत बता दी गई. इसमें आधे घंटे मामला फंसा रहा. इसके बाद बोर्ड से खुशी की रिहाई का परवाना जेल भेजा जा सका। बोर्ड में उसके पिता, भाई और बहन पहुंचे थे.

क्‍या हुआ था बिकरू गांव में

कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में 3 जुलाई 2020 को दबिश देने गई पुलिस टीम पर विकास दुबे और उसके साथियों ने हमला बोल दिया था. उस सनसनीखेज वारदात में यूपी पु‍लिस के डीएसपी समेत आठ पुलिसवाले शहीद हो गए थे. बाद में विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया. उसका भतीजा और दाहिना हाथ माना जाने वाला अमर दुबे भी घटना के बाद फरार हो गया था लेकिन आठ जुलाई 2020 को हमीरपुर के मौदाहा में पुलिस ने उसे एक एनकाउंटर में मार गिराया.

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