इंसान में धड़केगा टाइटैनियम से बना ‘हृदयंत्र’, जानें IIT Kanpur के विशेषज्ञों का प्रयास

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ABC News: दिल की बीमारियों के बेहतर और सुरक्षित इलाज की खोज की दिशा में जारी सतत प्रयासों के क्रम में आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञों ने एक अहम कोशिश की है. वे ‘हृदयंत्र’ नामक एक ऐसा कृत्रिम दिल बनाने का संकल्पना को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जो वर्ष 2024 तक लोगों की धड़कन बन सकता है.

आइआइटी के विशेषज्ञों ने दुनिया के सबसे उन्नत कृत्रिम हृदय बनाने का काम जनवरी 2022 में शुरू किया था. पहले इसके लिए शोध एवं विकास टास्क फोर्स बनाई गई और उसका चेयरमैन आइआइटी के बायोलाजी विभाग के प्रो. अमिताभ बंद्योपाध्याय को बनाया गया. प्रो. बंद्योपाध्याय बताते हैं कि कृत्रिम हृदय बनाने का काम बहुत जटिल है. इसलिए बहुत सारे संस्थानों और विशेषज्ञों को इस काम में शामिल किया गया है. संस्थान में मौजूद सुविधाओं व लैब में ही अनुसंधान को आगे बढ़ाया गया.
हृदयंत्र विकसित करने के चरण
हृदयंत्र की संकल्पना को साकार करने की दिशा में पहले कदम के रूप में यह जानने की कोशिश की गई कि शरीर के भीतर ऐसी कौन-सी धातु या पदार्थ का बना उत्पाद लगाया जा सकता है, जिसके होने से शरीर को कोई नुकसान नहीं हो, यानी कि वह जैवअनुकूल (बायोकांपैटेबल) हो और दिल के एकदम करीब रहकर काम कर सके. साथ ही रक्त में मौजूद कोशिकाओं, प्लेटलेट्स आदि को कोई नुकसान न पहुंचाए. इसके लिए तमाम धातुओं पर अनुसंधान हुआ और अंत में टाइटैनियम को सबसे उपयुक्त पाया गया. इसके बाद पंप के आकार पर काम शुरू हुआ. पंप का आकार ऐसा रखने का प्रयास है कि वह कम से कम ऊर्जा लेकर रक्त संचार को प्रभावी करे. यह पंप ऐसा होगा जो दिल के एकदम करीब होगा, लेकिन उसे छुएगा नहीं. इसके साथ ही मोटर का काम भी 50 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है. इसमें एक आंतरिक व एक वाह्य बैटरी होगी. वाह्य बैटरी आंतरिक बैटरी को बैकअप देगी. आंतरिक बैटरी की चार्जिंग कम होने पर अलार्म मिलेगा और लोग बैटरी को चार्ज कर सकेंगे.

हृदयंत्र की ये होंगी खासियतें
भारत में इस कृत्रिम हृदय की कीमत करीब 10 लाख रुपये होगी. फिलहाल यह विदेश से मंगाना पड़ता है और इसके लिए एक करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं. यह अनुसंधान अगले वर्ष दिसंबर तक पूरा होने की संभावना है. इसके बाद इस अत्याधुनिक दिल के मानव परीक्षण के लिए तैयार होने की उम्मीद है. आइआइटी के विज्ञानी स्वास्थ्य क्षेत्र के दिग्गजों के साथ मिलकर जिस कृत्रिम दिल (लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस) ‘हृदयंत्र’ को विकसित कर रहे हैं वह डिवाइस एक ऐसा पंप है, जिसका इस्तेमाल हृदयगति रुकने पर मरीजों में ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा के दौरान पुल के रूप में या फिर हृदय प्रत्यारोपण में असमर्थ लोगों के लिए डेस्टिनेशन थेरेपी के रूप में किया जाएगा. यह बैटरी से चलने वाला एक मैकेनिकल पंप होगा, जो बाएं वेंट्रिकल (हृदय के मुख्य पंपिंग चैंबर) को शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त की आपूर्ति करने में मदद करेगा. बता दें कि अभी देश में 32 प्रतिशत से ज्यादा मौतें केवल हृदय की बीमारियों से होती है और कीमत अधिक होने से इलाज करा पाना मुश्किल होता है.


अगले वर्ष जानवरों पर होगा ट्रायल
अगले वर्ष यह कृत्रिम हृदय विकसित होते ही सबसे पहले उसका ट्रायल जानवरों पर किया जाएगा. दावा है कि हृदयंत्र दुनिया का सबसे उन्नत ही नहीं सबसे सस्ता लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस होगा. आइआइटी के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर बताते हैं कि कृत्रिम दिल एक मैकेनिकल पंप है, जो इलेक्ट्रानिक सर्किट व नियंत्रण प्रणाली से काम करेगा.

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