ABC NEWS: पंजाब से असम की यात्रा के दौरान सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर साहिब वर्ष 1665 में कानपुर आए थे. उन्होंने यहां सरसैया घाट पर विश्राम किया था. उनके कानपुर आने पर बाबा श्रीचंद संप्रदाय के उदासी साधुओं ने सरसैया घाट पर विश्राम की व्यवस्था की थी. जिस स्थान पर उन्होंने विश्राम किया, वहां वर्ष 1828 में गुरु ग्रंथ साहिब को विराजमान कराया गया.
इसी स्थान पर शहर का पहला गुरुद्वारा स्थापित किया गया. इस गुरुद्वारा का नाम संकट हरण दुख निवारण रखा गया. इसे गुरुद्वारा सरसैया घाट भी कहा जाता है. सोमवार को उनका शहीदी दिवस मनाया जाएगा. इस दौरान सरसैया घाट गुरुद्वारे में शबद कीर्तन व अरदास होगी.
गुरु संगत के साथ पंजाब से थल मार्ग से यात्रा करते हुए गुरु तेग बहादुर साहिब कानपुर पहुंचे. सरसैया घाट पहुंचने पर बाबा श्रीचंद जी संप्रदाय उदासी संतों ने उनके विश्राम की व्यवस्था की. उस समय सरसैया घाट पर इसी संप्रदाय के संतों का डेरा था. संतों ने गुरु तेग बहादुर साहिब के लिए पलंग भी बनवाया यहां विश्राम के बाद वे जल मार्ग से प्रयागराज के लिए रवाना हुए.
लाला ठंठीमल ने गुरुद्वारा बनवाया
पंजाब से व्यापार करने कानपुर आए गुरुनानक पंथी लाला ठंठीमल ने ब्रिटिश सरकार से अनुमति लेकर गुरु तेग बहादुर साहिब की विश्राम स्थली सरसैया घाट पर गुरु ग्रंथ साहिब को विराजमान कराया था. गुरुग्रंथ साहब को उसी पलंग पर विराजमान कराया गया, जिसको उदासी संतों ने गुरु तेग बहादुर साहिब के लिए बनाया था. हर वर्ष वैशाखी पर यहां मेला आयोजित होता है.
बच्चों को दी जाती निशुल्क शिक्षा
गुरु तेग बहादुर साहिब ने सरसैया घाट पर जिस जगह विश्राम किया था, वहां शहर का पहला गुरुद्वारा स्थापित किया गया. वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद गुरुद्वारे में लोगों का आना जाना खत्म हो गया. 24 अगस्त 2003 को गुरुद्वारा में शबद कीर्तन व गुरुवाणी शुरू हुई. गुरुद्वारा में बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दी जाती है. श्रद्धालुओं के लिए गुरुद्वारा की ओर से गोविंदनगर से सरसैया घाट तक बस भी चलती है.