ABC NEWS: 20 साल पहले महज 300 रुपये की घूसखोरी के मामले में दोषी पाए गए एक शख्स को शीर्ष न्यायालय ने बरी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस मामले में अवैध मांग की बात स्वीकार नहीं हुई है. शिकायतकर्ता का कहना था कि सफाईकर्मी के तौर पर काम कर रहे दोषी ने मृत्यु प्रमाण पत्र की कॉपी देने के लिए रिश्वत ली थी.
यह मामला 2003 का है. शख्स को प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 के मामले में दोषी ठहराया गया था. गुरुवार को जस्टिस अभय ओका और जस्टिस राजेश बिंदल ने पाया कि इस मामले में अवैध मांग की बात साबित नहीं हुई है. हाल ही में संवैधानिक पीठ की तरफ से दिए गए फैसले में कहा गया था कि इस एक्ट के तहत दोषी करार दिए जाने के लिए डिमांड और रिकवरी होना जरूरी है.
खबर है कि हाईकोर्ट ने इस धारणा के आधार पर फैसला दे दिया था कि अपीलकर्ता के पास रुपये बरामद हुए हैं, तो मांग हुई होगी. स्टेट ने तर्क दिया था कि phenolphthalein लगी हुए नोट सीरियल नंबरों के साथ अपीलकर्ता के पास प्राप्त हुए थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि मांग का कोई सबूत नहीं है.
कोर्ट ने कहा, ‘अगर नीरज दत्त बनाम राज्य (दिल्ली एनसीटी सरकार)(सुप्रा) में संवैधानिक बेंच की तरफ से निर्धारित कानून के तहत अभियोजन पक्ष की तरफ से पेश किए गए सबूतों की जांच की जाए, तो अपीलकर्ता की सजा और दोष कानूनी तौर पर कायम नहीं रह सकते.’