ABC NEWS: आस्था और धर्म की नगरी वाराणसी में मकर संक्रांति पर पतंग खूब उड़ाई जाती है. पतंगों का शौक ही ऐसा है कि बचपन बीते पचपन साल क्यों न हो गए हैं लेकिन उसका रंग जस का तस है. बुजुर्गियत के कारण जो नहीं उड़ा पाते, वे अपने बच्चों को प्रोत्साहित कर रहे हैं. वहीं किशोरों और युवाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसके लिए हर पतंग सिर्फ एक पतंग है. जबकि शौकीन लोग पतंगबाजी कर रहे हों या नहीं मगर हर पतंग को वे नाम से पहचानते हैं. पतंगों के इन अजब गजब नामों में अब बुलडोजर का नाम भी शामिल हो चुका है. इस पतंग की एक तो बनावट खास है दूसरे इसकी खासियत यह है कि यह बहुत तेज हवा में भी आसानी से नियंत्रित की जा सकती है.
नाम पुराना कलेवर नया
सोनारपुरा के मानव पतंग स्टोर के संचालक मानव बताते हैं ज्यादातर पतंगों के नाम तो अब भी पुराने हैं लेकिन उनका कलेवर काफी बदल गया है. चांदतारा, धारा, कंठा कुछ ऐसी पतंगें हैं जो अब भी जस की तस हैं. मांगदार, आंखदार, पौनी चांदतारा, मोरपंखी, गिलासा, अद्धा, बद्धा, टोपा, उल्टाटोपा, पट्टा, मांगदार बेलमतारा, मांगदार चांदतारा पतंगें अब भी शौकिया पतंगबाजों की खास पहचान बनी हुई हैं. गिलासा नाम वाली बनारसी पतंग की बनावट में 40 साल बाद भी कोई अंतर नहीं आया है. कंठा दो रंग वाली यह पतंग बरेली के बाजार की सबसे पुरानी पहचानों में से एक है.
35 हजार पतंगों का अद्भुत खजाना
बनारस में 35 हजार पतंगों का एक अद्भुत खजाना है। पिछले साठ साल में देश में हुआ शायद ही ऐसा कोई नामचीन उस्ताद रहा हो जिसके हाथ की बनी पतंगें इस खजाने का हिस्सा न हों. इनमें से ज्यादातर उस्तादों के न रहने के बाद भी घातक काइट क्लब के खजाने में उनका हुनर महफूज है.
इसमें छह से साठ साल पुरानी पतंगें हैं जो देश के 30 अलग-अलग शहरों में बनीं हैं. क्लब के वरिष्ठतम सदस्य अजय शंकर तिवारी ‘गुड्डू’ बताते हैं कि इनमें 40 से 60 साल पुरानी कुछ पतंगें ऐसी भी हैं जिन्हें क्लब के सदस्यों के पिता अथवा दादा ने उड़ाई थी. हमने उन पतंगों को बतौर निशानी सहेज रखा है. इनकी हिफाजत के लिए पूरी टीम बहुत यत्न करती है. बड़े-बड़े दस ट्रंक में रखी इन पतंगों को एक निश्चित अंतराल पर बाहर निकाला जाता है. आवश्यकता पर तेज धूप में कुछ समय रखा जाता है. ऐसा करने से पतंग बनाने में प्रयुक्त सामग्री में स्वाभाविक रूप से आने वाली नमी समाप्त हो जाती है.
इस खजाने में ज्यादातर पतंगें काली या नीली हैं। डिजानर कही जाने वाली कुछ खास पतंगें भी हैं. काली या नीली पतंग उड़ाने का कारण यह कि इनका उपयोग प्रतियोगिता में ढीलकर लड़ाने के लिए किया जाता है. एक से डेढ़ हजार मीटर तक की दूरी पर पेच लड़ सकती है. बहुत दूर हो जाने से डिजाइनर पतंगों को देख पाना मुश्किल होता है जबकि सर्वाधिक दूरी पर भी काली-नीली पतंग का आभास पतंगबाज को मिलता रहता है.
इस खजाने में बनारस सहित जौनपुर, बरेली, मेरठ, आगरा, बड़ौदा, अहमदाबाद, जामनगर, जयपुर, बीकानेर, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, दिल्ली, गाजियाबाद, मुरादाबाद, फर्रुखाबाद, बहराइच, लखनऊ, कानपुर, रामपुर, इलाहाबाद, बाराबंकी, बक्सर, पटना, आसनसोल, कोलकाता, छत्तीस परगना आदि शहरों के नामचीन उस्तादों द्वारा बनाई गई पतंगें हैं.