आज होगा ‘सूर्य नमस्कार’! आदित्य L1 पर टिकी हैं सबकी निगाहें, भरेगा 15 लाख KM की उड़ान

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ABC NEWS: चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद अब देश के साथ-साथ पूरे विश्व की निगाहें ISRO के सूर्य मिशन यानी Aditya-L1 पर टिकी हैं. इसका काउंटडाउन भी शुरू हो गया है. श्रीहरिकोटा के लॉन्चिंग सेंटर से आदित्य-L1 मिशन को आज 11.50 बजे लॉन्च किया जाएगा. आदित्य एल-1 अंतरिक्ष यान को पृथ्वी और सूर्य के बीच की एक फीसदी दूरी तय करके L-1 पॉइंट पर पहुंचा देगा .

सूरज की सतह से थोड़ा ऊपर यानी फोटोस्फेयर का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है. उसके केंद्र का तापमान अधिकतम 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है. ऐसे में किसी यान या स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है. धरती पर इंसानों द्वारा बनाई गई कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो सूरज की गर्मी बर्दाश्त कर सके.  इसलिए स्पेसक्राफ्ट्स को सूरज से उचित दूरी पर रखा जाता है. या फिर उसके आसपास से गुजारा जाता है. ISRO आज सुबह 11.50 बजे आदित्य-एल1 मिशन लॉन्च करने जा रहा है. यह भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी (Space Based Observatory) है. आदित्य-एल1 सूरज से इतनी दूर तैनात होगा कि उसे गर्मी लगे तो लेकिन वह मारा न जाए. खराब न हो. उसे इसी हिसाब से बनाया गया है.

आदित्य-एल1 में खास बात क्या है, क्यों है ये अलग?

आदित्य-एल1 भारत का पहला सोलर मिशन है. सबसे महत्वपूर्ण पेलोड विजिबल लाइन एमिसन कोरोनाग्राफ (VELC) है. इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाया है. इसमें 7 पेलोड्स हैं. जिनमें से 6 पेलोड्स इसरो और अन्य संस्थानों ने बनाया है. आदित्य-एल1 स्पेसक्राफ्ट को धरती और सूरज के बीच एल1 ऑर्बिट में रखा जाएगा. यानी सूरज और धरती के सिस्टम के बीच मौजूद पहला लैरेंजियन प्वाइंट. इसलिए उसके नाम में L1 जुड़ा है. L1 असल में अंतरिक्ष का पार्किंग स्पेस है. जहां कई उपग्रह तैनात हैं. आदित्य-एल1 धरती से 15 लाख km दूर स्थित इस प्वाइंट से सूरज की स्टडी करेगा. करीब नहीं जाएगा.

109 दिन बाद सूर्य को ‘Halo’ कहेगा आदित्य-L1

लॉन्चिंग के बाद आदित्य-एल1 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करेगा. यह चांद की दूरी से करीब चार गुना ज्यादा है. लॉन्चिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है PSLV-XL रॉकेट. जिसका नंबर है PSLV-C57. आदित्य अपनी यात्रा की शुरुआत लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) से करेगा. उसके बाद यह धरती की गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र यानी स्फेयर ऑफ इंफ्लूएंस (SOI) से बाहर जाएगा. यह थोड़ी लंबी चलेगी. इसके बाद इसे हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में डाला जाएगा. जहां पर L1 प्वाइंट होता है. यह प्वाइंट सूरज और धरती के बीच में स्थित होता है. लेकिन सूरज से धरती की दूरी की तुलना में मात्र 1 फीसदी है. इस यात्रा में इसे 109 दिन लगने वाले हैं.

नासा और यूरोप का सूर्य मिशन 
1995 में, NASA और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने मिलकर सोलर एंड हेलियोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी (SOHO) मिशन लॉन्च किया था। इसे पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के L1 पॉइंट पर रखा गया था। यह मिशन ठीक उसी तरह था जैसा अब इसरो अपने आदित्य-L1 के साथ करने जा रहा है. SOHO अब तक का सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला सूर्य-दर्शन सेटेलाइट है. इस अंतरिक्ष यान ने 11-वर्षीय दो सौर चक्रों का निरीक्षण किया है और इस दौरान इसने हजारों धूमकेतुओं की खोज की है.

हालांकि, कई भारतीय सौर भौतिकविदों का मानना है कि आदित्य-एल1 मिशन और इसके पेलोड NASA-ESA के SOHO की तुलना में कहीं बेहतर हैं. यानी भारत का ये मिशन नासा और यूरोपीय एजेंसी के मिशन को पीछे छोड़ देगा. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोफेसर रमेश ने बताया, “ग्रहण के दौरान, चंद्रमा बिल्कुल प्रकाशमंडल को ढक लेता है और हम सौर कोरोना को ठीक उसी स्थान से देख पाते हैं जहां से यह शुरू होता है. जब हम इसे कृत्रिम रूप से करने का प्रयास करते हैं, तो हमें एक ऑकल्टिंग डिस्क (occulting disk) लगानी पड़ती है. ऑकल्टिंग डिस्क का साइज बहुत महत्वपूर्ण है, चाहे वह फोटोस्फीयर के समान आकार का हो या बड़ा हो. ऑकल्टिंग डिस्क का आकार फोटोस्फीयर के समान नहीं होने के कारण कुछ समस्याएं रही हैं. इसलिए पहले नासा और ईएसए मिशन कोरोना का ठीक से निरीक्षण नहीं कर पा रहे थे.” प्रोफेसर रमेश की टीम ने आदित्य-एल1 के प्राइमरी पेलोड, विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) को डिजाइन और विकसित किया है.

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