आज पापांकुशा एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व

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ABC NEWS: पापांकुशा एकादशी व्रत हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है. पापांकुशा का अर्थ है, पाप रूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधना. साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्तों को कभी धन-दौलत, सुख, सौभाग्य की कमी नहीं होने देते. नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करते हैं, जिससे जिंदगी खुशहाल बनी रहती है. इस बार पापांकुशा एकादशी का व्रत 6 अक्टूबर, बृहस्पतिवार यानी आज है.

पापांकुशा एकादशी व्रत का महत्व 

पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा करते हैं. इस व्रत को रखने से सभी प्रकारों के पापों का नाश होता हैं. भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर से कहा था कि ये व्रत सबको रखना चाहिए. इससे जीवन में धन धान्य की प्राप्ति होती हैं. जो इस व्रत को नियमपूर्वक रखता है. उसे अच्छा जीवनसाथी प्राप्त होता है. साथ ही मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में भी स्थान प्राप्त होता है.

पापांकुशा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त 

हिंदू पंचांग के अनुसार, पापांकुशा एकादशी आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ रही है. इसका शुभ मुहूर्त 5 अक्टूबर, बुधवार को सुबह 12 बजे शुरू होगा और समापन आज यानी 6 अक्टूबर को 09 बजकर 40 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, पापांकुशा एकादशी 6 अक्टूबर को ही रखी जाएगी.

चौघड़िया मुहूर्त- सुबह 06 बजे से लेकर 07 बजकर 30 मिनट तक रहेगा. इसके अलावा एक मुहूर्त सुबह 10 बजकर 31 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजे तक है.

पारण का समय अगले दिन 07 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 17 मिनट से लेकर 07 बजकर 26 मिनट तक रहेगा.

पापाकुंशा एकादशी व्रत की पूजा विधि 

इस व्रत के प्रभाव से अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है. इस व्रत के नियमों का पालन एक दिन पूर्व यानि दशमी तिथि से ही करना चाहिए. दशमी पर सात तरह के अनाज जिनमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन सातों धान्य की पूजा एकादशी के दिन की जाती है. एकादशी तिथि पर प्रात:काल उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. संकल्प लेने के पश्चात घट स्थापना करनी चाहिए और कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखकर पूजा करनी चाहिए. इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए. व्रत के अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन और अन्न का दान करने के बाद व्रत खोलें.

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