संस्कृति और संस्कृत को आज भी जी रहा है भारत का यह गांव, जानें इसके बारे में

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ABC NEWS: ( पूजा वर्मा ) आज के समय में जहा लोग अपनी मातृभाषा हिंदी बोलने में कतराते है, अंग्रेजी न आने पर शर्मिंदगी महसूस करते हैं अपनी संस्कृति,सभ्यता अपनी मातृभाषा तक भूलते जा रहे वेस्टर्न कल्चर को अपना रहे इन सब के बीच आज हम एक ऐसे गांव की बात करने जा रहे रहे जहां आज भी हमारी वैदिक संस्कृति ,सभ्यता की झलक देखने को मिलती है. २१वीं सदी में रह कर भी हमारी वैदिक संस्कृति को अपनाएं हुए है. आज भी वहां के घरो में मंत्रोच्चारण की आवाज ,शंख की मधुर ध्वनि सुनाई देती है गुरु शिष्य की परंपरा निभाई जाती है. हर शख्स बच्चे हो या बुजुर्ग सभी संस्कृत में बात करते है. इस गांव के लोग संस्कृत भाषा को ही को मातृभाषा मानते हैं. यहाँ देश विदेश से लोग संस्कृत सीखने आते हैं.


आज हम बात करने वाले है मत्तूर गाँव की जो कि कर्नाटक का एक अनोखा गांव है. यह तुंगा नदी के तट पर बसा हुआ है और शिमोगा (शिवमोग्गा) से लगभग 8 किमी की दूरी पर है. मत्तूर भारत के ‘संस्कृत गांव’ के रूप में जाना जाता है. यह भारत का एकमात्र ऐसा गाँव है जहाँ के निवासी संचार के माध्यम के रूप में संस्कृत भाषा का उपयोग करते हैं.कर्नाटक के हरे-भरे शिमोगा जिले में बसा मत्तूर बारहमासी तुंगा नदी के तट पर बसा एक छोटा सा गांव है. जहां के ग्रामीण आज भी वैदिक जीवन शैली का नेतृत्व करते हैं, और हर रोज प्राचीन ग्रंथों मंत्रो का जाप करते हैं और संस्कृत में बातचीत करते हैं. 9000 की आबादी वाले स गाँव में पिछले 40 सालो से संस्कृत बोली जा रही है. जिसकी शुरुआत साल 1980 में हुई थी.

संस्कृत कैसे बनी गांव की प्राथमिक भाषा-
1981 में जब शास्त्रीय भाषा को बढ़ावा देने वाली संस्था संस्कृति भारती ने मत्तूर में 10 दिवसीय संस्कृत कार्यशाला का आयोजन किया उस समय इस कार्यशाला गाँव के लोगों ने और उडुपी के पास पेजावर मठ के सिद्ध पुरुष ने भी भाग लिया, ग्रामीणों की उत्सुकता को देखकर साधू ने कथित तौर पर कहा, “एक जगह जहां लोग संस्कृत बोलते हैं, जहां पूरा घर संस्कृत में बात करता है! आगे क्या? एक संस्कृत गांव ” यह एक ऐसा आह्वान था जिसे मत्तूर के निवासियों ने गंभीरता से ले लिया और इस तरह से संस्कृत इस गाँव की प्राथमिक भाषा बन गई.

 

शिक्षा का पाठयक्रम –
विद्यार्थी पाँच वर्षीय पाठ्यक्रम में गाँव के बुजुर्गों की निगरानी में वेदों को सीखते हैं. मत्तूर गाँव में एक केंद्रीय मंदिर और पाठशाला है. पाठशाला में पारंपरिक तरीके से वेदों का उच्चारण किया जाता है. यहाँ छात्र पुराने संस्कृत के पत्तों को भी इकट्ठा करते हैं, कंप्यूटर पर स्क्रिप्ट लिखते हैं और वर्तमान संस्कृत में खराब हुए पाठों को फिर से लेखन करते हैं ताकि इसे प्रकाशन के रूप में आम लोगों को उपलब्ध कराया जा सके. इन वर्षों में, विदेशों से भी कई छात्र संस्कृत भाषा सीखने के लिए पाठशाला में आते है.

बेहतरीन अकादमिक रिकॉर्ड –
यहां के ग्रामीण 21वीं सदी में भी वैदिक जीवन शैली का नेतृत्व करते हैं इसका मतलब ये नहीं कि वे पिछड़े हुए है. मत्तूर के स्कूलों में जिले के बेहतरीन अकादमिक रिकॉर्ड भी हैं. यहां के शिक्षकों के अनुसार, संस्कृत सीखने से छात्रों में गणित और तर्क के लिए भी योग्यता विकसित करने में मदद मिलती है. मत्तूर के कई युवा इंजीनियरिंग या मेडिसिन की पढ़ाई के लिए विदेश गए हैं और गांव में हर परिवार में कम से कम एक सदस्य सॉफ्टवेयर इंजीनियर जरूर है.

आज के इस प्रतिस्पर्धा भरे आधुनिक युग में जहां लोग अंग्रेजी भाषा को अधिक महत्व दे रहे और अपनी मात्रा भाषा को भूलते जा रहे उस सभी के लिए यह गाँव एक प्रेरणा का स्रोत है. देश की शायद 1 प्रतिशत आबादी संस्कृत बोलती होगी, मगर इस गांव के लोगों ने संस्कृत को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना कर देश की संस्कृति को बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है, यही बात इस गांव को खास बनाती है की संस्कृत जैसी भाषा जिसे लोग भूलते जा रहे हैं, उसे जीवित करने के लिए इस गांव के लोगों का एक बहुत बड़ा योगदान दिया है.

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