कानपुर जू के इन बेजुबानों को भी है नाम की पहचान, सोहन-मोहन से लेकर लालू-कालू तक इनके नाम

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ABC NEWS: ( भूपेंद्र तिवारी ) नाम पुकारने पर सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि जंगली जानवर भी जवाब देते हैं. यकीन न हो तो कानपुर चिड़ियाघर में आकर देख लीजिए. शेर और तेंदुए भी अपना नाम पुकारने पर तुरंत हरकत भी करते हैं. सालों से रह रहे इन बेजुबानों को यहां के पालकों ने  प्रशिक्षित कर दिया है. मसलन शेर अजय को उनका पालक पुकारे वह गुर्राकर बताता है कि वह अपना नाम पहचान रहा है. बाघ मल्लू नाम लेने पर सिर हिलाने लगता है. जेब्रा ऐश्वर्या पुकारने पर बाड़े के किनारे की तरफ भाग आती है.

चिड़ियाघर में इनके नाम भी एक से बढ़कर एक रखे गए हैं, जिनको सुनते ही आपके भी चेहरे पर मुस्कान जरूर आ जाएगी. देवताओं से हीरो-हीरोइन व कॉर्टून किरदारों तक के नाम इन्हें दिए गए हैं. अब शेरों की बात की करें तो यहां दो मादा व दो नर हैं. जिनके नाम हैं अजय, शंकर, उमा और नंदिनी है. बाघों में प्रशांत, बघीरा, बादल, मल्लू, पुष्पा, दुर्गा, लूना, मालती, सावित्री का नाम दिया गया है. एकमात्र मादा ज्रेबा का नाम ऐश्वर्या है.

सोहन-मोहन ही नहीं लालू-कालू भी   
जू में सोहन, मोहन, लालू, कालू, भी हैं. ये तेंदुए हैं. सूरज, चंचल, मोनी, पीताम्बरी, जैक, नीलम, टोनी, टॉम, सुल्तान, मुराद, प्रताप, जग्गू, शेरू, श्याम नाम तेंदुओं को दिए गए हैं. सभी अपने नाम जानते भी हैं. पुकारने पर गुर्राने से लेकर सलाखों के करीब आने तक की गतिविधियों से इसका पता चलता है.

गैंडा, हिप्पो, भालू भी पुकारने पर आते हैं करीब   
चिड़ियाघर में तीन गैंडे इस समय हैं. इनके नाम मानू, पवन और कृष्णा हैं. हिप्पो प्रजाति के  विष्णु, इंदिरा, ब्रह्मा, लक्ष्मी, गणेश, विस्वा भी यहां रह रहे हैं. हिमालयन भालू राधा और शालिनी हैं. वहीं देसी भालू राजा भी इनका साथी है.

ऐसे ही नहीं रखते नाम, ये होती है वजह 
चिड़ियाघर में खतरनाक जानवरों को नाम ऐसे ही नहीं दिया जाता है. इसके पीछे भी कई दिलचस्प कारण हैं. सुल्तानगंज, प्रतापगढ़, मुरादाबाद से तेंदुए पकड़े गए तो उनके नाम मुराद, प्रताप, सुल्तान रख दिए गए. बताया गया कि जो जानवर जिस जिले से आता है, उसका नाम उसी पर रखा जाता है. वहीं कुछ के नाम पंसदीदा फिल्मी कलाकारों पर है. पकड़ने वाली टीम के नाम भी कई की पहचान बन गई.

प्रेम, लगाव के लिए रखते हैं नाम 
चिड़ियाघर के निदेशक केके सिंह के अनुसार नाम रखने का कारण जानवरों से प्रेम व लगाव है. यहां आने के बाद यह हमारी जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि परिवार की तरह होते हैं। नाम से पुकारने पर प्रतिक्रिया भी देते हैं. कई के नाम उनके पुराने जिले पर हैं तो कई के नाम कर्मियों ने अपने बच्चों व परिवार के सदस्यों पर रख दिया है.

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