सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हिजाब की तुलना सिखों के कड़े या कृपाण से करना गलत’

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ABC News: सुप्रीम कोर्ट में आज यानी गुरुवार को हिजाब बैन मामले पर सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि हिजाब की तुलना सिखों के लिए अनिवार्य केश, कड़ा, कृपाण जैसी चीजों से नहीं की जा सकती. 5 ककार सिखों के लिए अनिवार्य हैं. उन्हें भारत में संवैधानिक और कानूनी मान्यता है. कर्नाटक हिजाब मामले की सुनवाई के तीसरे दिन सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की, जब हिजाब समर्थक पक्ष के वकील बार-बार सिखों की वेशभूषा का हवाला दे रहे थे.

जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच 15 मार्च को आए कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. उस फैसले में हाई कोर्ट ने स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म के पूरी तरह पालन को सही ठहराया था. इस आधार पर मुस्लिम लड़कियों के स्कूल-कॉलेज हिजाब पहनने पर रोक को सही पाया गया था. हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.  आज सुनवाई के तीसरे दिन हिजाब समर्थक पक्ष के 2 वकीलों देवदत कामत और निज़ाम पाशा ने अपनी जिरह पूरी की. कोर्ट ने सोमवार, 12 सितंबर को दोपहर 2 बजे सुनवाई जारी रखने की बात कही है. आज जिरह करने वाले दोनों वकीलों का जोर इस बात पर रहा कि हाई कोर्ट ने इस्लामिक धार्मिक किताबों में लिखी बातों का सही अर्थ नहीं समझा. इस पर जजों ने वकील निज़ाम पाशा से कहा कि वह जिन पुस्तकों और उनमें लिखी बातों को प्रामाणिक मानते हैं, उन पर संक्षिप्त में लिखित नोट कोर्ट में जमा करवा दे. वकील निजाम पाशा ने यह दलील भी दी कि अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ही यह कहा था कि वह धार्मिक किताबों का विश्लेषण नहीं करेगा. श्रद्धालुओं की आस्था अपने आप में पर्याप्त है. इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा, “वह आस्था इस बात से जुड़ी थी कि जहां पूजा की जा रही है, वही राम लला का जन्मस्थान है. यह मामला उससे थोड़ा अलग है”.

देवदत्त कामत ने आज एक बार फिर राज्य सरकार की तरफ से स्कूलों को जारी आदेश का मसला उठाया. उन्होंने कहा कि उस आदेश में लिखा गया था कि हिजाब धार्मिक रूप से अनिवार्य नहीं. उसके बाद शिक्षण संस्थानों ने जो ड्रेस कोड जारी किया, वह उससे प्रभावित हुए बिना कैसे रह सकता था. कामत ने यह भी कहा कि अगर कुछ लोग हिजाब के विरोध में दबाव बनाते हैं और इस आधार पर नियम बनते हैं तो यह सही नहीं कहा जा सकता. हिजाब की अनिवार्यता पर दलील देते हुए वकील निजाम पाशा ने कुरान के सूरा अन निसा में महिलाओं को लेकर कही गई बातों का हवाला दिया. उन्होंने यह भी कहा कि हाई कोर्ट ने हिजाब न पहनने के लिए दंड न होने की बात कही. इस आधार पर उसे अनिवार्य नहीं माना लेकिन, इस्लाम में नमाज या रोजे का पालन न करने के लिए भी कोई सजा नहीं लिखी गई है. इन बातों का फैसला भगवान पर छोड़ा गया है. इस्लाम के मानने वालों का विश्वास है कि कुरान में लिखी बात हर युग में सही है. उनकी इस भावना को संविधान का अनुच्छेद 25 मौलिक अधिकार का दर्जा देता है. इसलिए, हिजाब पर भी रोक नहीं लगनी चाहिए.

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