ABC NEWS: ( भूपेंद्र तिवारी ) कानपुर शहर यूं ही अनोखा नहीं है, यहां की परंपराओं ने भी उसे अनोखी पहचान दी है. इन सबके बीच यहां एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जिसके पट साल में सिर्फ एक बार विजय दशमी के दिन खुलते हैं. खास बात यह है कि मंदिर में विराजमान प्रतिमा पर शक्ति के साधक तरोई के फूल अर्पित किए जाते हैं.
दरअसल, बात हो रही दसानन यानी रावण की, जिसका मंदिर कानपुर में है. दशहरा वाले दिन जब लोग असत्य पर सत्य की जीत द्योतक श्रीराम के जयकारे लगा रहे होते हैं तब यहां मंदिर में पट खुलते ही रावण की पूजा के लिए लोग जुटते हैं. शहर का हृदय स्थल कैलाश मंदिर शिवाला, जहां शक्ति के मंदिर के मध्य दसानन का भी मंदिर बना है. माता छिन्नमस्ता मंदिर के द्वार पर रावण का मंदिर है.
155 साल पहले मंदिर की हुई थी स्थापना
बताया जाता हैं कि यहां पर स्व. गुरु प्रसाद शुक्ला करीब 155 साल पहले मां छिन्नमस्ता का मंदिर और कैलाश मंदिर की स्थापना कराई थी. मंदिर में मां काली, मां तारा , षोडशी, भैरवी, भुनेश्वरी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला महाविद्या के साथ दुर्गा जी, जया, विजया, भद्रकाली, अन्नपूर्णा, नारायणी, यशोविद्या, ब्रह्माणी, पार्वती, श्री विद्या, देवसेना, जगतधात्री आदि देवियां विराजमान हैं। शिव और शक्ति के बीच दसानन का मंदिर है और रावण की प्रतिमा स्थापित है.
दशहरा पर रावण को क्यों पूजते हैं लोग
रावण शक्तिशाली होने के साथ प्रकांड विद्वान पंडित होने के साथ शिव और शक्ति का साधक था. रावण को इच्छा मृत्यु का वरदान था और अमरता प्राप्त थी, उसकी नाभि में अमृत था. भगवान श्रीराम ने जब उसकी नाभि को बाण से भेद दिया था तो दसकंधर धरती पर आ गिरा था लेकिन उसकी मृत्यु नहीं हुई थी.
भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्ति के लिए रावण के पास भेजा था. यही वजह है कि दशहरा के दिन रावण के मंदिर के पट खुलते हैं और लोग बल, बुद्धि, दीर्घायु और अरोग्यता का वरदान पाने के लिए जुटते हैं.
यहां लंकेश के दर्शन के लिए दूर-दूराज क्षेत्र से लोग आते है. विजय दशमी के दिन सुबह शिवाले में शिव का अभिषेक करने के बाद दसानन मंदिर में श्रृंगार के साथ दूध, दही, घृत, शहद, चंदन, गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. इसके बाद महाआरती होती है, जिसमें लोगों की भीड़ जुटती है.
सुहागिनें शक्ति के साधक तरोई का पुष्प अर्पित करके अखंड सौभाग्य और संतान के लिए बल, बुद्धि और आरोग्य की कामना करती हैं. सरसों के तेल का दीपक जलाने के साथ लोग पुष्प अर्पित कर साधना करते थे. यहां कानपुर ही नहीं बल्कि उन्नाव, कानपुर देहात, फतेहपुर आदि जिलों से लोग आते हैं और पूजन के बाद फिर साल भर के लिए पट बंद कर दिए जाते हैं.