राजनीति के अखाड़े में 50 साल से ज्यादा टिके रहे शरद पवार, हर बार पड़े भारी

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ABC News: भारत की राजनीति के दिग्गजों का जब-जब जिक्र होगा, शरद पवार का नाम जरूर लिया जाएगा. पवार एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक अपने सियासी दांव पेंच से कई सरकारों के खेल बिगाड़े और बनाए. अपनी अलग पार्टी बनाने के बाद भी उनके पैर राजनीति के दंगल में जमे रहे, आज शरद पवार 82 साल के हो चुके हैं, लेकिन उन्हें इस दंगल में पछाड़ने की हिम्मत कोई नहीं रखता. ये खुद पवार ने हर बार साबित किया है. पिछले 50 साल से वो सियासत की इस पिच पर नाबाद टिके रहे. जिसके बाद अब उन्होंने राजनीति से रिटायरमेंट का ऐलान कर दिया है. इसी मौके पर आज हम आपको पवार की पावर के कुछ किस्से बताएंगे, जब उन्होंने विरोधियों को अपनी ताकत का एहसास कराया.

सबसे पहले ताजा मामले की बात करते हैं जब शरद पवार ने साबित किया कि वो पॉलिटिक्स के असली बॉस हैं. दरअसल महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी की सरकार गिरने के बाद एक बार फिर शरद पवार के भतीजे और एनसीपी नेता अजित पवार को लेकर अटकलें तेज हो गईं. कहा जा रहा है कि अजित पवार बीजेपी के साथ जाने वाले हैं और इसके लिए विधायकों को जुटाना भी शुरू कर दिया है. अजित पवार पर ईडी का शिकंजा लगातार कसता जा रहा है. उनके अलावा उनके परिवार और बाकी विधायकों पर भी केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई चल रही है. इसी बीच अजित पवार के बीजेपी से हाथ मिलाने की खबरें सामने आईं, कहा गया कि जांच की आंच से बचने के लिए पवार ऐसा कदम उठा सकते हैं. जिसके लिए विधायकों के बीच भी हलचल देखने को मिली. एनसीपी के तमाम बड़े नेता अजित पवार से मुलाकात कर रहे थे. अब यहां से शरद पवार की ताकत का गेम शुरू होता है. एनसीपी में कोई भी विधायक शरद पवार को बाइपास कर अजित पवार के साथ नहीं जाना चाहता था. अजित पवार के सामने यही चुनौती थी कि अगर वो बीजेपी में जाते हैं तो उन्हें दो तिहाई बहुमत हासिल करना होगा, जिससे दल बदल कानून लागू नहीं होगा.

ऐसे में शरद पवार के इशारे के बिना विधायक पाला बदलने के लिए तैयार नहीं हुए. 82 साल के शरद पवार ने एक बार फिर किलेबंदी शुरू कर दी. यही वजह है कि अजित पवार को मीडिया के आगे आकर ये कहना पड़ा कि “मैं मरते दम तक एनसीपी में ही रहूंगा.” अब दूसरा मामला भी अजित पवार से ही जुड़ा है. जब साल 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए तो शरद पवार ने बीजेपी के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना में गठबंधन की बात चल रही थी, तभी सुबह एक तस्वीर ने महाराष्ट्र में सियासी भूचाल खड़ा कर दिया. इस तस्वीर में एक तरफ देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ एनसीपी नेता अजित पवार उपमुख्यमंत्री की शपथ लेने जा रहे थे. अजित पवार ने दावा कर दिया था कि उनके पास करीब 20 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है और इसीलिए उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली है. इसके बाद बारी शरद पवार के वार की थी. पवार ने यहां बता दिया कि अजित उनसे सामने अभी कच्चे खिलाड़ी हैं. दूसरे ही दिन शरद पवार ने एनसीपी विधायकों की बैठक बुलाई और अजित पवार धड़े के विधायकों को फोन कर तलब किया. विधायकों ने हिम्मत नहीं दिखाई कि वो शरद पवार के कहे को टाल दें.

नतीजा ये हुआ कि अजित पवार दूसरे छोर पर अकले खड़े रह गए. इस पूरे सियासी ड्रामे के बाद अजित पवार को उलटे पांव लौटना पड़ा और उनका जमकर मखौल भी बना. यहां पता चल गया कि शरद पवार की पार्टी पर पकड़ कितनी मजबूत है. महज तीन दिन में बीजेपी-अजित पवार की सरकार गिराने के बाद प्रधानमंत्री मोदी को भी पवार ने अपनी पावर से चौंका दिया था. इस दौरान एक बात और हुई थी. शरद पवार ने कुछ वक्त बाद एक बयान दिया था, जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने कहा था कि अजित पवार अगर बीजेपी के साथ सरकार बनाने नहीं गए होते तो महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन नहीं हटता और एमवीए गठबंधन की सरकार नहीं बन पाती. इसके बाद राजनीतिक जानकारों ने बताया कि ये शरद पवार का एक बड़ा राजनीतिक दांव था. उन्हें पूरी पिक्चर की स्क्रिप्ट पता थी, लेकिन उन्होंने क्लाइमेक्स तक इंतजार किया और फिर वही हुआ जो वो चाहते थे.

27 साल की उम्र में विधायक बनने वाले शरद पवार ने 1978 में दिखा दिया कि वो राजनीति में लंबी रेस के घोड़े हैं. 1978 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ था, तब किसी भी दल को बहुमत का आंकड़ा नहीं मिला. तब जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस और इंदिरा कांग्रेस ने हाथ मिला लिया और सरकार बना ली, लेकिन इसके बाद इंदिरा से शरद पवार की अनबन हुई और उन्होंने बड़ा सियासी दांव चलते हुए कांग्रेस के कुल 69 विधायकों में से 40 को तोड़ दिया और नया गठबंधन बनाया. इस गठबंधन की सरकार में शरद पवार पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 1983 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन किया. शरद पवार के कद का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि वो राजीव गांधी की हत्या के बाद पीएम पद के तीन सबसे बड़े दावेदारों में से एक थे. साल 1987 में शरद पवार वापस कांग्रेस में शामिल हो गए थे, कुछ ही वक्त में उन्होंने अपनी मौजूदगी दिखाई और इसके एक साल बाद 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया. जब महाराष्ट्र में 1990 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई, तब पवार ने अपने शह और मात के खेल से विपक्षी शिवसेना और बीजेपी को धूल चटाई थी. उन्होंने 12 निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में खींचा और राज्य में सरकार बना दी. इस तरह पवार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. 1991 में जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई, तब प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस में तीन सबसे बड़े दावेदारों का नाम सामने आया. जिनमें शरद पवार भी शामिल थे.

पवार के अलावा इस लिस्ट में नारायण दत्त तिवारी और पीवी नरसिम्हा राव शामिल थे. हालांकि आखिर में नरसिम्हा राव को पीएम बनाया गया और पवार को रक्षा मंत्रालय सौंप दिया गया. 1993 में पवार को फिर से महाराष्ट्र की राजनीति में भेज दिया गया और वो चौथी बार मुख्यमंत्री बने. कांग्रेस के एक दिग्गज नेता के तौर पर उभरे शरद पवार ने 1999 में सोनिया गांधी के खिलाफ आवाज उठा दी. उन्होंने पार्टी की कमान एक विदेशी मूल की महिला को देने पर सवाल खड़े किए, जिसके चलते पार्टी से उन्हें निष्कासित कर दिया गया. तब पवार ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी का गठन किया. हालांकि इसके बाद उन्होंने हर बार कांग्रेस के यूपीए गठबंधन के साथ मिलकर काम किया. बाद में लंबे वक्त तक वो केंद्र में मंत्री भी रहे. इस दौरान भी शरद पवार की तूती दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक की राजनीति में बोलती थी. आज भी शरद पवार की अगली चाल का पता लगा पाना किसी के बस की बात नहीं होती है. वो कभी भी पीएम मोदी और अमित शाह से मुलाकात करते हैं. जिसके बाद तरह-तरह के कयास लगने शुरू हो जाते हैं. हालांकि पवार खुद इन कयासों को खत्म भी कर देते हैं. अब महाराष्ट्र की सियासत में जो कुछ हलचल हो रही है, उसे लेकर सबकी निगाहें शरद पवार की अगली चाल पर हैं. यानी आज भी महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में ऊंट किस करवट बैठेगा ये 82 साल के शरद पवार ही तय कर रहे हैं.

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