ABC NEWS: पाकिस्तान को नया सेनाध्यक्ष मिल गया है और आईएसआई में रह चुके सैयद आसिम मुनीर को यह जिम्मेदारी मिली है, जो जनरल कमर जावेद बाजवा की जगह लेंगे. भारत के नजरिए से बात करें तो आसिम मुनीर उस वक्त खुफिया एजेंसी आईएसआई के डीजी थी, जब भारत के पुलवामा में फरवरी, 2019 में आतंकवादी हमला हुआ था. उस हमले के 15 दिनों के अंदर ही भारत ने बालाकोट स्ट्राइक की थी और पाकिस्तान को करारा जवाब मिला था. यही नहीं पाकिस्तान को पकड़े गए भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को भी 24 घंटे के अंदर छोड़ना पड़ा था. इस तरह पाकिस्तान सेनाध्यक्ष के तौर पर सैयद मुनीर को यह पता ही होगा कि भारतीय सेना की ताकत कितनी है.
कहा जाता है कि पुलवामा अटैक के दौरान भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के चीफ अनिल धसमाना ने सैयद मुनीर को बताया था कि भारत ने भारत ने पृथ्वी बलिस्टिक मिसाइल भी तैयार कर रखी थीं. शायद यही वजह था कि तत्कालीन इमरान खान सरकार ने अभिनंदन वर्धमान को अरेस्ट करने के दिन ही शाम को उन्हें रिहा करने का ऐलान किया था. इसके बाद अगले ही दिन उन्हें रिहा कर दिया गया था. इस तरह मुनीर को पता है कि भारत के साथ किसी भी तरह के टकराव के क्या परिणाम हो सकते हैं। लेकिन उन्हें जिस मौके पर पाकिस्तानी सेना की कमान मिली है, उस दौरान उनके सामने भारत की बजाय आंतरिक हालातों की चुनौती अधिक है.
इसकी वजह यह है कि सत्ता से बेदखल होने के बाद इमरान खान लगातार सड़कों पर हैं और आंदोलन कर रहे हैं. वह सेना पर सीधे हमले कर रहे हैं और सैन्य अफसर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उन्हें जवाब दे रहे हैं. पाकिस्तान में यह हालात अप्रत्याशित हैं. यहां तक कि सेना पर यूं राजनीतिक हमलों ने उसकी साख को भी कमजोर किया है. इमरान खान उसके लिए ऐसे शख्स बन गए हैं, जिनसे न वह अदावत सहन कर पा रही है और न ही दोस्त गांठ सकी है. ऐसे में पाकिस्तानी सेना के आगे फिलहाल यही चुनौती है कि कैसे वह अपना इकबाल कायम रखे और विवादों से भी बच सके.
सिंध और बलूचिस्तान में मानने को तैयार नहीं हैं बागी
पाकिस्तान के लिए यह वह दौर है, जब सिंध, बलूचिस्तान में भी आंतरिक विद्रोह चरम पर है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के करीब 40 आतंकी खैबर पख्तूनख्वा में ऐक्टिव हैं. यहां तक कि बलूच और सिंध विद्रोहियों ने तो चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर पर भी अटैक किया है. कई बार चीनी नागरिक भी हमले का शिकार हुए हैं, जिससे पाकिस्तान की छवि खराब हुई है. इन समूहों का कहना है कि पाकिस्तान उनके इलाके में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है, लेकिन उनके समुदायों के लोगों का उत्पीड़न हो रहा है.
सीमा पर मानने को नहीं तालिबान, खैबर में कर रहा परेशान
यही नहीं पाक सेना के आगे दूसरी चुनौती यह है कि कैसे कभी दोस्त रहे तालिबान से निपटा जा सके, जो अब पाकिस्तान के दुश्मन की तरह काम कर रहा है. तालिबान ने ब्रिटिश काल में खींची गई डूरंड लाइन को मानने से ही इनकार कर दिया. वह मानता है कि चालाक अंग्रेजों ने पश्तूनों को बांटने के लिए यह रेखा खींची थी. साफ है कि उसकी नजर खैबर पख्तूनख्वा पर है. अफगान और पाक की सीमा पर आए दिन फायरिंग के मामले सामने आते रहते हैं. ऐसे में रावलपिंडी स्थित पाकिस्तानी सेना मुख्यालय से क्या रास्ता इस संकट का निकलता यह भी देखने वाली बात होगी.