लोहड़ी पर्व के मौके पर जानें ये तीन पौराणिक कथाएं, क्या है इन परंपराओं का महत्व?

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ABC NEWS: आपने पहले कभी लोहड़ी माता की कथा सुनी है. अगर नहीं तो आपको लोहड़ी माता की कथा एक बार जरूर सुन लेनी चाहिए. इससे आपको पता चलेगा कि लोहड़ी का पर्व क्यों मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है? पुरे विश्व में भारत को त्यौहारों का देश माना जाता है. इसका कारण ये है कि भारत में बहुत से धर्म के लोग रहते हैं और सभी धर्मों में त्यौहारों की अपनी अलग भूमिका होती है. वहीं इतने सारे त्योहारों के होने से लगता है कि मानो पुरे वर्ष ही त्योहारों का सिलसिला जारी रहेगा.

इसी तरह एक त्यौहार है लोहड़ी. जिसे उत्तर भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. लोहड़ी का त्यौहार मुख्य रूप से पंजाब में पंजाबियों के द्वारा मनाया जाता है, हालांकि बहुत से हिन्दू लोग भी इस पर्व को मनाते हैं. इसलिए आप लोगों को लोहड़ी माता की कथा के बारे में कुछ जानकारी प्रदान दी जा रही है.

भारत में लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले 13 या 14 जनवरी को मनाया जाता है. ये त्यौहार उत्तर भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है. लोहड़ी माता सती की याद में मनाई जाती है लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य सभी के साथ घुल मिलकर शीत ऋतु की सबसे बड़ी रात को सबके साथ मिलकर जश्न मनाना है.

लोहड़ी पर्व की जरूरी कथाएं

1- एक पौराणिक कथा के अनुसार, लोहड़ी की आग दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती की याद में जलाई जाती है. दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव की अर्धांगिनी मां पार्वती थीं. एक बार जब राजा दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया. लेकिन, राजा दक्ष ने भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया. जब मां सती बिना आमंत्रण के वहां पहुंची तो राजा दक्ष ने शिवजी का बहुत अपमान किया. जिस कारण सती ने अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. तभी से सती के अग्नि में समर्पित होने के कारण लोहड़ी का पर्व मनाया जाने लगा और ये एक लोहड़ी पर्व की परंपरा बन गई, जो सदियों से चली आ रही है.

बता दें कि जब शिवजी के अपमान को माता सती नही सहन कर पाई तो यज्ञ की हवन में ही अपनी आहुति दे दी तब से माता सती की याद में हर वर्ष लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है. लोहड़ी का पर्व हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है.

2- एक और मान्यता के अनुसार, लोहड़ी को दुल्ला भट्टी से जोड़ा जाता है. लोहड़ी के दिन जितने भी गीत गाए जाते हैं. सभी गीतों में दुल्ला भट्टी का उल्लेख जरूर मिलेगा. दुल्ला भट्टी मुगल शाषक अकबर के समय का विद्रोही था जो कि पंजाब में रहता था. दुल्ला भट्टी के पुरखे भट्टी राजपूत कहलाते थे. उस समय लड़कियों को गुलामी के लिए अमीर लोगों के बीच बेचा जाता था. दुल्ला भट्टी ने न केवल उन लड़कियों को बचाया बल्कि उनकी शादी भी कराई. दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत इस काम में रोक भी लगाई और दुल्ला भट्टी गरीब लड़कियों की शादी अमीर लोगों को लूटकर कराता था.

3- एक और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, लोहड़ी के दिन कंस ने श्रीकृष्ण भगवान को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था, जिसे श्रीकृष्ण जी ने खेल खेल में ही मार दिया था. इसीलिए भी लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है.

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