ABC NEWS: सनातन धर्म में करवा चौथ का विशेष महत्व है. यह व्रत विवाहित महिलाओं के बड़े व्रतों में से एक है, जिसमें सुहागन अपने पति की लंबी उम्र और उत्तम स्वास्थ्य के लिए कठोर निर्जला व्रत रखती हैं. यह व्रत प्रातः सूर्योदय से प्रारंभ होता है जो रात में चंद्रमा पूजन के बाद पति के हाथों से खुलता है. इस बीच महिलाएं किसी भी प्रकार का जल, अन्न, फल ग्रहण नहीं करतीं.
करवा चौथ व्रत की ऐसे करें शुरुआत
सतना चित्रकूट के अथर्ववेद आचार्य देवानंद जी ने बताया कि करवा चौथ के व्रत की शुरुआत सास के हाथ से सरगी लेकर की जाती है, जिसके बाद प्रातः ही स्नान-ध्यान के पश्चात व्रत का संकल्प लिया जाता है. पूरा दिन निर्जला व्रत रहें. इस बीच संपूर्ण पूजन सामग्री इकट्ठा कर लें. गाय के गोबर या मिट्टी से गौर गणेश बना लें, जिसके बाद माता गौरी का आह्वान करें. उन्हें सुहाग का संपूर्ण श्रृंगार चढ़ाएं. करवा में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी का बूरा रखें. रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं. शाम में गौरी और गणेश की पूजा करें और कथा सुनें. रात्रि में चंद्रमा को देख पति से आशीर्वाद लें और व्रत का पारण करें.
भोग क्या चढ़ाएं
करवा चौथ के भोग और व्रत के पारण के लिए आप अपनी सुविधा अनुसार भोग बना सकती हैं, जैसे पूड़ी, हलवा, चूरमा, दाल, कढ़ी, खीर सब्जी इत्यादि. लेकिन, एक बात का खास ख्याल रखें कि इन भोगों में लहसुन-प्याज का प्रयोग न करें. इस व्रत में आप 56 प्रकार के भोग भी लगा सकती हैं. किसी प्रकार के खाद्य पदार्थ की इस व्रत में मनाही नहीं है.
व्रत का मुहूर्त
इस वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को 31 अक्टूबर मंगलवार को रात 9 बजकर 30 मिनट से यह व्रत शुरू होकर 1 नवंबर को रात 9 बजकर 19 मिनट तक है. करवा चौथ की पूजा 1 नवंबर को शाम 5 बजकर 44 मिनट से 7 बजकर 2 मिनट तक की जा सकती है. उस दिन चंद्रोदय 8 बजकर 26 मिनट पर होगा.
प्रस्तुति: भूपेंद्र तिवारी