Kanpur: हार के बावजूद बढ़ा अमिताभ का कद, महाना भी हुए मजबूत, ऐसे समझिए 2024 की गणित

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ABC News: (रिपोर्ट: सुनील तिवारी) निकाय चुनाव को ऐसे ही लोकसभा चुनावों से पहले सेमीफाइनल नहीं कहा जा रहा था. कम से कम निकाय चुनाव में कानपुर ने तो लोकसभा चुनावों की तस्वीर को काफी कुछ स्पष्ट कर दिया है. निकाय चुनाव में जिस तरह वंदना बाजपेयी ने प्रदर्शन किया, उससे उनके पति अमिताभ बाजपेयी का कद और बढ़ गया है. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने जिस तरह सारे प्रोटोकॉल दरकिनार कर प्रमिला पांडेय के पक्ष में ताकत झोंक दी, वह उनके बढ़ते कद को एक पायदान और ऊपर पहुंचा गया. इसके बाद माना जा रहा है कि लोकसभा चुनावों में कानपुर में महाना बनाम अमिताभ का मुकाबला हो सकता है, हालांकि, दोनों ही पार्टी के जानकार, वेट एंट वॉच की नीति अपनाने पर जोर दे रहे हैं.

दरअसल, समाजवादी पार्टी ने अमिताभ बाजपेयी ने जिस तरह से अपने कद में इजाफा किया है, उसका पता तो इसी बात से चल गया था जब निकाय चुनाव में महापौर पद के लिए वह अपनी पत्नी वंदना बाजपेयी का टिकट ले आए थे. अमिताभ, सपा में लंबे अर्से से जुड़े हैं और पहले वह ग्रामीणांचल की राजनीति में जोर आजमाइश करते थे लेकिन जबसे शहरी राजनीति में उन्होंने आर्यनगर विधानसभा में अपना पैर रखा, उसके बाद वह पीछे मुड़कर नहीं देख रहे हैं. आर्यनगर सीट कभी भाजपा के लिए अपराजेय कही जाती थी लेकिन अमिताभ ने पहले यहां पर भाजपा के जमे जमाए विधायक सलिल विश्नोई के पांव उखाड़े और फिर सुरेश अवस्थी को धूल चटा दी. लगातार दो जीत से अमिताभ का कद पार्टी में ऐसा बढ़ा कि फिलहाल समाजवादी पार्टी में उनके आसपास कोई टिकता दिख नहीं रहा है. पार्टी विधायक इरफान सोलंकी के जेल जाने के बाद भी वह हमलावर मुद्रा में दिखे और उनके घर परिवार के साथ लगातार खड़े रहे. इससे वह हिंदु के साथ मुस्लिम वोटों पर भी अपनी पकड़ बनाए रखे.

इसका नतीजा निकाय चुनाव के परिणाम मेंं दिखाई दिया, भले ही वंदना बाजपेयी हार गई हों लेकिन अमिताभ ने अपनी कुशल रणनीति से समाजवादी पार्टी को शहरी निकाय की राजनीति में तीसरे नंबर से लाकर दूसरे नंबर की पार्टी बना दिया. हार के बावजूद पहली बार समाजवादी पार्टी, कानपुर में हुए निकाय चुनाव में रनर रही. पार्टी के वोटबैंक में इजाफा करने के बाद अब अमिताभ की निगाहें 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर टिकी हैं. इस बात को कई बार अमिताभ खुद बयां कर चुके हैं कि वह तो लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. इसके बाद जानकार तर्क भी मजबूत देते हैं. उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी में फिलहाल कानपुर के अंदर अमिताभ बाजपेयी के कद का ऐसा कोई नेता नहीं है, जो लोकसभा चुनावों की गणित में फिट बैठता हो, आर्यनगर विधानसभा की राजनीति में आने के बाद उन्होंने शहरी वोटरों के बीच खासी पैठ बनाई है. विधायक इरफान सोलंकी भी जेल में हैं. ऐसे में उनकी राह में किसी प्रकार की मुश्किल दिखाई नहीं देती. रविवार को सोशल मीडिया पर वीडियो संदेश जारी कर अमिताभ बाजपेयी ने भविष्य की तैयारियों का भी संकेत दे दिया.

वहीं, बात अगर भाजपा की हो, तो विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. छावनी हो या महराजपुर विधानसभा, विधानसभा चुनावों में महाना अपराजेय रहे हैं. सतीश महाना को विधानसभा चुनावों में किस तरह से हराया जाए, इसको लेकर किसी भी राजनीतिक दल के पास न तो कोई चेहरा है और न ही कोई रणनीति. महाना के राजनीतिक करियर में हार का एक कोई ग्रहण है, तो वह साल 2009 के लोकसभा चुनावों में ही है. 2009 के लोकसभा चुनाव में सतीश महाना, कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल ने 18,906 वोटों से हारे थे. इस हार के बावजूद महाना को जो वोट मिले थे, वह पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले करीब पांच प्रतिशत ज्यादा ही थे. अब महाना एक बार फिर फॉर्म में आ चुके हैं. पिछले निकाय चुनाव में भी उनकी ही पैरवी प्रमिला पांडेय को टिकट दिलवाने में कामयाब रही थी और इस निकाय चुनाव में उन्होंने ऐन मौके पर जिस तरह प्रमिला पांडेय को बैक किया, उसका गुणगान तो खुद निकाय चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद प्रमिला पांडेय कर रही हैं.

माना जा रहा है प्रमिला पांडेय की जीत, सतीश महाना की लोकसभा दावेदारी में एक बड़ी भूमिका निभा सकती है. पार्टी के ही जानकार इसके पीछे कई वजह गिनाते हैं. उनका तर्क है कि जिस तरह से प्रमिला पांडेय का टिकट फाइनल होने के बाद भी सत्यदेव पचौरी ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जाहिर की, उसका गलत संदेश गया. इसके बाद प्रमिला पांडेय, डैमेज कंट्रोल करने के लिए सत्यदेव पचौरी के घर भी गईं, सीएम योगी के मंच पर नीतू सिंह को अहम स्थान मिला, इसके बाद भी मतदान के दिन सत्यदेव पचौरी मीडिया के बीच त्रिकोणीय मुकाबला ही शहर में बोलते नजर आए. यह सारी बातें प्रदेश संगठन तक भेजी जा चुकी हैं. इसके अलावा सांसद सत्यदेव पचौरी की उम्र भी, उन पर भारी पड़ रही है, जो मानक, राष्ट्रीय नेतृत्व की तरह से पहले ही तय किए जा चुके हैं. यही वजह है कि निकाय चुनाव के बाद से अब लोकसभा चुनावों के लिए तानाबाना बुना जा रहा है. हालांकि, भाजपा में टिकट ऐन मौके पर तय होते हैं और कब​ किसका पत्ता कट जाए, इसका भरोसा नहीं होता, इन सबके बावजूद कानपुर के अंदर जो राजनीतिक समीकरण बने हैं, वह 2024 की लड़ाई में सपा और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला मान रहे हैं. निकाय चुनाव के प्रदर्शन ने भी काफी कुछ चेहरों को लेकर सारी तस्वीर साफ कर दी है.

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