ABC News: इस समय हर कोई अपने घरों में गणपति के आगमन की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है. गणपति स्थापना को लेकर इस समय कुछ लोग भ्रम की स्थिति में हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि 18 सितंबर को शाम को चतुर्थी तिथि लग रही है, ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से अधिकतर लोग गणपति स्थापना की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि, ज्योतिषिय गणना में ग्रह, नक्षत्र के हिसाब से देखा जाए तो 18 सितंबर को गोधूलि बेला के समय ही गणपति की स्थापना सबसे ज्यादा श्रेयस्कर रहेगा. इसको लेकर इण्डियन काउंसिल ऑफ़ एट्रोलॉजिकल साइंसेज़ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमेश चिंतक ने बड़ी वजह बताई है.
डॉ. रमेश चिंतक कहते हैं कि 18 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक तृतीया तिथि है, इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी. ऐसे में 18 सितंबर को गोधूलि बेला में शाम चार बजकर 15 मिनट से शाम सात बजे तक गणेश स्थापना को श्रेष्ठ मुहूर्त है. उन्होंने बताया कि इस समय स्वाति नक्षत्र भी होगा, जोकि श्रेष्ठतम फलदाता माना जाता है. स्वाति को राहु का नक्षत्र माना जाता है और इसके देवता वायु हैं. 18 सितंबर को गोधूलि बेला में कुंभ लग्न भी पड़ रहा है, जोकि गणपति स्थापना के मुहूर्त को विशेष फलदायी बना रहा है. उन्होंने कहा कि तृतीया में जब सायंकाल चतुर्थी हो तो गणेश जी का पूजन शुभ है.
19 सितंबर को इस वजह से पड़ रहा है विघ्न
उन्होंने बताया कि 19 सितंबर को गणपति स्थापना करने जा रहे हैं तो जान लें कि 18 सितंबर की रात्रि एक बजकर 12 मिनट से भद्रा लगेगी और दोपहर एक बजकर 45 मिनट तक रहेगी. 19 सितंबर को चर्तुर्थी भी एक बजकर 55 मिनट तक ही है. ऐसे में भद्रा काल में गणपति की स्थापना करना शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता है. इन सब गणनाओं के अनुसार सोमवार की शाम को गणपति स्थापना करना शुभ है.
जानें विसर्जन के बारे में महत्वपूर्ण बातें
गणेश विसर्जन को लेकर उन्होंने बताया कि तृतीया की शाम को स्थापना से दसवें दिन २७ सितंबर को विसर्जन शुभ होगा. क्योंकि इस दिन शतभिषा नक्षत्र है जो स्वाति नक्षत्र से दसवां नक्षत्र है. शतभिषा के ऋषि च्यवन है और देवता वरुण हैं जोकि जलाशय, नदी, तालाब, समुद्र के अधिष्ठाता है. नक्षत्रों में ये सबसे पुष्टि प्रदान करने वाले है. इस नक्षत्र में १०० तारे है. स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए सबसे उत्तम नक्षत्र हैं. महूर्त शास्त्र में इनका विशेष महत्व है. जो लोग तीन दिन, पांच दिन या सात दिन के लिये गणपति स्थापना कर रहे हैं, उनको विसर्जन मध्यान्ह के समय अभिजीत मुहूर्त में या संध्याकाल गोधूली बेला में करना सही रहेगा.