ABC News: गीता प्रेस ट्रस्ट ने गांधी शांति पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि को लेने से मना कर दिया है. गीता प्रेस ट्रस्टियों का कहना है कि कहना है कि गीता प्रेस किसी तरह का दान का धन नहीं लेता है. इसलिए ट्रस्ट ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि गांधी शांति पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि गीता प्रेस स्वीकार नहीं करेगा.
बता दें कि गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने सर्वसम्मति से गीता प्रेस के नाम पर मुहर लगाई है. गीताप्रेस के प्रबंधक डॉ लाल मणि तिवारी ने बताया कि गीता प्रेस कहीं से भी मिलने वाले सम्मान या धन को स्वीकार नहीं करता है, लेकिन गीता प्रेस के ट्रस्टियों ने निर्णय लिया है कि वह गांधी शांति पुरस्कार स्वीकृत करेंगे, लेकिन उसके साथ मिलने वाले एक करोड़ रुपये को स्वीकार नहीं किया जाएगा. गीता प्रेस के प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी ने बताया कि वर्ष 1921 के आसपास जयदयाल गोयंदका ने कलकत्ता (कोलकाता) में गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी. इसी ट्रस्ट से गीता का प्रकाशन कराते थे. पुस्तक में कोई त्रुटि न हो इसके लिए प्रेस को कई बार संशोधन करना पड़ता था. प्रेस के मालिक ने एक दिन कहा कि इतनी शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है, तो अपनी प्रेस लगा लीजिए. यह बात गोयंदका के मन में घर कर गई. उन्होंने गीता प्रकाशित करने के लिए प्रेस लगाने का मन बनाया तो गोरखपुर का चयन किया. 29 अप्रैल 1923 को उर्दू बाजार में 10 रुपये महीने के किराए पर कमरा लेकर गीता का प्रकाशन शुरू किया गया. धीरे-धीरे गीता प्रेस का निर्माण हुआ. गीता प्रेस की वजह से गोरखपुर को आज अलग पहचान मिली हुई है. प्रेस के पास दो लाख वर्ग फीट जमीन है. इसमें 1.45 लाख वर्ग फीट में प्रेस, कार्यालय और मशीनें लगी हैं. 55 हजार वर्ग फीट में दुकानें और आवास हैं.