ABC NEWS: कानपुर में हैलट अस्पताल में डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ की भारी भरकम फौज है. इसके बावजूद बर्न के मरीजों का इलाज छोड़िए, मरहम-पट्टी तक नसीब नहीं होती है. हैलट इमरजेंसी में कराहते-रोते-बिलखते जले मरीजों को रेफर लेटर थमा कर उर्सला अस्पताल भेज दिया जाता है. जीएसवीएम मेडिकल कालेज, प्राचार्य, प्रो. संजय काला ने कहा कि पहले की तरह हैलट में बर्न वार्ड खोलने के लिए सभी विभागाध्यक्षों से राय ली जाएगी फिर फैसला लिया जाएगा. फिर से बर्न वार्ड खोलना कठिन काम है.बर्न यूनिट का निर्माण 11 महीने से बंद है और उसके चालू में होने का निकट भविष्य में भरोसा भी नहीं है. बावजूद इसके हैलट इमरजेंसी में फिर से बर्न वार्ड को चालू करने की योजना नहीं बनाई गई. प्राचार्य प्रो. संजय काला और डॉक्टरों के बीच कई बार मंथन हुआ लेकिन बर्न वार्ड का फैसला हर बार ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
अब तो कोरोना काल से बना बर्न वार्ड इमरजेंसी मरीजों के लिए निर्धारित कर दिया गया है, वहां पर बर्न या एस़िड के जले मरीजों को इलाज देने का सिस्टम ही खत्म कर दिया गया है. प्लास्टिक सर्जन की स्थायी तैनाती फिर भी इलाज नहीं विडम्बना देखिए कि हैलट में डॉ. प्रेम शंकर के रूप में प्लास्टिक सर्जन की स्थायी तैनाती की गई है ताकि बर्न मरीजों को इलाज के साथ सुपर स्पेशियलिटी इलाज मिल सके.
प्लास्टिक यूनिट के सारे सदस्यों से दूसरे काम कराए जा रहे हैं. बर्न यूनिट से पहले बर्न वार्ड को खोलने की स्थिति ठंडे़ बस्ते में डाल दी गई है इसलिए शहर या पड़ोसी जिलों से आए मरीजों को हैलट इमरजेंसी में रूकने के बाद उर्सला जाना पड़ता है. बीते साल डेरापुर के एक ग्रामीण राम विलास के घर में आग लगने के कारण चार परिवारीजनों को तीन घंटे इंतजार के बाद भी प्राथामिक उपचार नहीं मिला तो उसमें से उर्सला पहुंचते-पहुंचते दो की मौत हो गई थी.
एक साल में हैलट से रेफर केस
– नवम्बर 2021 34
– दिसम्बर 43
– जनवरी 29
– फरवरी 56
– मार्च 68
– अप्रैल 72
– मई 81
– जून 59
– जुलाई 37
– अगस्त 48
– सितम्बर 34
– अक्तूबर 31
– नवम्बर 67