कानपुर की दरगाहों में भी बसंत पंचमी की धूम: कई जगह हो रही महफिले समां, ऐसे शुरू हुई थी परंपरा

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ABC NEWS: वसंत पंचमी आज मनाई जा रही है. माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को माता सरस्वती का प्रकटोत्सव होता है. मां सरस्वती की पूजा संग ही कलम दवात की पूजा भी की जाती है. ज्योतिष सेवा संस्थान के पंडित आचार्य पवन तिवारी ने बताया कि इसी दिन से वसंत ऋतु का प्रारंभ होता है. श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है- ‘मैं ऋतुओं में वसंत हूं’.

बसंत पंचमी पर कानपुर शहर की दरगाहों में भी धूम रहती है. चिश्तिया सिलसिले की दरगाहों में बुधवार को महफिले समां (कव्वाली) हो रही है. जहां अमीर खुसरो का कलाम छाप तिलक सब छीन्हीं रे… तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम.. पेश किया जाएगा. पीले रंग के कपड़ों में सूफी यहां मौजूद रहते और खुशी का अहसास करते हैं. बसंत के मौके पर यह सदियों पुरानी रवाएत (परंपरा) अब तक कायम है. सरसों और गेंदे के पीले फूलों से सजे छोटे-छोटे गमले दरगाहों में लोग पेश करते हैं.

बड़ी संख्या में लोग बसंत के मौके पर निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में हाजिरी देने चले जाते हैं. शहर के ऐसे कब्रिस्तान जहां बुजुर्गों की कब्रें हैं और उनकी दरगाह वहीं बनी हुई है, सूफी एकत्रित होते हैं और बसंत मनाते हैं.

इन जगहों पर हुई तैयारियां
बुधवार को कुछ खास कब्रिस्तानों की दरगाहों व खानकाहों में सूफी सुबह पहुंचे. कव्वालों की कमी के चलते एक ही कव्वाल खानकाहों, दरगाहों और कब्रिस्तानों में थोड़ी-थोड़ी देर जाते हैं.

ऐसे शुरू हुई सूफियों की रूहानी परंपरा
नायब शहर काजी कारी सगीर आलम हबीबी ने बताया कि 12-13 वीं सदी के बुजुर्ग हजरत निजामुद्दीन औलिया को भांजे से बहुत मोहब्बत थी. उनका इंतकाल हो गया. वो बेहद उदास रहने लगे। गुरु को खुश करने को बसंत के दिन अमीर खुसरो पीले फूलों का गुलदस्ता तैयार कलाम सुनाया. यह देख लंबे समय के बाद गुरु मुस्कुराए.

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