कब है हयग्रीव जयंती? जानें भगवान विष्णु को क्यों लेना पड़ा यह अवतार

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ABC NEWS: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार लिया था. इस साल हयग्रीव जयंती (Hayagreeva Jayanti) 11 अगस्त दिन गुरुवार को है. हर साल श्रावण पूर्णिमा ति​थि पर हयग्रीव जयंती मनाई जाती है. इस दिन रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाते हैं.काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट कहते हैं कि भगवान विष्णु के प्रमुख 24 अवतारों में से हयग्रीव भी एक अवतार हैं. हयग्रीव अवतार से जुड़ी दो कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें एक कथा माता लक्ष्मी के श्राप से जुड़ी है और दूसरी कथा मधु कटैभ के वध से. आइए जानते हैं कि भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार क्यों लिया?

हयग्रीव अवतार की पहली कथा
पौराणिक क​था के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को देखकर मुस्कुरा रहे थे. माता लक्ष्मी ने समझा कि श्रीहरि उनका उपहास कर रहे हैं. तब उन्होंने श्राप दे दिया कि आपका ​सिर धड़ से अलग हो जाए. इस श्राप में भी भगवान विष्णु की लीला ही थी.

समय बीतने के साथ एक दिन भगवान विष्णु योग निंद्रा में थे. वे युद्ध से थके हुए थे. उन्होंने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाई थी और उसे धरती पर टिका दिया था और बाण की नोक पर अपना सिर रखकर सो गए थे. दूसरी ओर हयग्रीव नामक असुर महामाया को अपने तप से प्रसन्न करने में सफल हो गया.

उसने मां महामाया से अमरता का वरदान मांगा. देवी महामाया ने कहा कि जो जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है, तुम कोई और वर मांग लो. तब उसने कहा कि आप यह वरदान दो कि उसकी मृत्यु हयग्रीव ही कर पाए. देवी उसे यह वर देकर चली गईं. असुर ने सोचा कि वह अपना वध क्यों करेगा. इस तरह से वह अमर हो गया.

असुर हयग्रीव तीनों लोकों में अत्याचार करने लगा. उसका आतंक बढ़ गया था. उसने ब्रह्मा जी से भी सभी वेदों को छीन लिया. अब ब्रह्म देव परेशान हो गए. उन्होंने भगवान विष्णु को योग निदा से बाहर लाने के लिए एक कीड़े को उत्पन्न किया. उसे कीड़े ने भगवान विष्णु के धनुष की प्रत्यंचा काट दी.

इस वजह से भयंकर आवाज हुई और भगवान विष्णु का सिर कट गया. फिर देखते ही देखते वह सिर अदृश्य हो गया. देवी महामाया की आज्ञा के अनुसार ब्रह्मा जी ने एक घोड़े का मस्तक काटकर विष्णु जी के धड़ से जोड़ दिया. इस प्रकार भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार हुआ.

हयग्रीव अवतार में भगवान विष्णु असुर हयग्रीव से युद्ध करने पहुंच गए. उन्होंने उस असुर का वध कर दिया और वेदों को ब्रह्मा जी को सौंप दिया. इस प्रकार से हयग्रीव के आतंक का अंत हो गया.

हयग्रीव अवतार की दूसरी कथा
हयग्रीव अवतार की इस कथा में भी ब्रह्मा जी से वेदों का हरण दो राक्षस कर लेते हैं. उनका नाम मधु और कैटभ होता है. वे दोनों असुर वेदों को लेकर रसातल में ​पहुंच जाते हैं. वेदों के हरण से दुखी ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास जाते हैं और मदद की प्रार्थना करते हैं. तब भगवान विष्णु हयग्रीव अवतार लेते हैं. फिर वे रसातल में जाकर मधु और कैटभ का वध करते हैं और वेदों को वापस लाते हैं.

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