जब तीर लगते ही ‘रावण’ की सच में हुई मौत… कहानी उस रामलीला की जिसने बदल दी परंपरा

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ABC NEWS: दशहरे में रावण दहन की परंपरा के बारे में आप जानते होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि उत्तर प्रदेश में एक जगह ऐसी भी है जहां पर रावण की पूजा होती है, रावण के मंदिर हैं और रावण के नाम पर दुकानों का नामकरण हुआ है. खास बात है कि यहां पर रामलीला मंचन के दौरान रावण का वध नहीं होता है, बल्कि दशहरा के बाद रावण दहन होता है.

UP के पीलीभीत में बीसलपुर कस्बा है. बीसलपुर में दशहरा के दिन रावण वध का मंचन नहीं होता है. रावण वध का मंचन दशहरा के बाद होता है और अगर उस दिन शनिवार पड़ गया तो रावण दहन तीसरे दिन होगा, क्योंकि बीसलपुर की रामलीला में रावण बने गंगा विष्णु उर्फ कल्लू मल की मौत रावण के वध के दौरान हुई थी.

गंगा विष्णु उर्फ कल्लू मल की मौत के बाद से रामलीला ऐतिहासिक हो गई. आज से 35 साल पहले 1987 में दशहरा पर शनिवार के दिन रामलीला मंचन के दौरान रावण बने कल्लू मल को राम रावण के युद्ध के दौरान जब भगवान राम का पात्र स्वरूप द्वारा मारे गये तीर लगते ही राम-राम कहते हुए प्राण त्याग दिये थे.

तत्कालीन जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के साथ-साथ लाखों की भीड़ यह समझ रही थी कि अभी भी मंचन चल रहा है, लेकिन असल में रावण बने कल्लू मल की मौत हो गई थी. उसके बाद से यहां की रामलीला प्रसिद्ध हो गई. गंगा विष्णु उर्फ कल्लू मल की मृत्यु के बाद 35 साल हो चुके हैं और अब उनके बेटे दिनेश, रावण का किरदार निभाते हैं.

पत्रकार मृदुल पांडेय ने बताया कि जब कल्लू मल की 35 साल पहले मृत्यु हुई थी, तब हमने इसी ग्राउंड पर उनका अंतिम संस्कार किया था और जैसे ही उनकी चिता जलाई गई तो उनकी अस्थियां और राख लोग उठाकर छीन कर भाग गए, इनके परिवार के लोगों में कल्लू मल की अस्थियां, हड्डियां ,राख तक नहीं मिली.

इसके बाद से ही यह रामलीला प्रसिद्ध हो गई. दूर-दूर के लोग रामलीला देखने आते हैं और हर बार जब रावण वध का मंचन होता है तो सभी की सांसे रुक जाती है. नाटक के दौरान रावण के जब तीर लगता है और जब वह गिर जाता है, उसके बाद जब तक उठ नहीं जाता है, तब तक लोगों की आंखें रावण की ओर ही रहती हैं.

कल्लू मल की मौत के बाद से रामलीला ग्राउंड में ही कल्लू स्वरूप दशानन की एक बड़ी मूर्ति लगा दी गई है. इस रामलीला की खास बात है कि यहां रावण औ उनके परिवार के पात्र सभी ब्राह्मण बनते हैं, वही भगवान राम और उनके परिवार के सभी पात्र क्षत्रिय बनते हैं. यहां पर एक प्रथा और भी है कि जो पात्र अदा करेगा, उसके परिवार के लोग ही उस पात्र का अदा करते रहेंगे.

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