कब है माघ मास की षटतिला एकादशी, जानें पूजन मुहूर्त, व्रत विधि और उपाय

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 ABC NEWS: षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. ज्योतिष के अनुसार, षटतिला एकादशी पर तिल का बेहद खास महत्व है. इस व्रत में तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिलों का दान और तिलों से बनी चीजों का सेवन करना अत्यंत शुभ माना गया है. इस बार षटतिला एकादशी का व्रत 6 फरवरी, मंगलवार को रखा जाएगा.

शुभ मुहूर्त 
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन एकादशी तिथि की शुरुआत 5 जनवरी को शाम 5 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और इसकी तिथि का समापन 6 जनवरी को शाम 4 बजकर 7 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, षटतिला एकादशी को 6 फरवरी को मनाई जाएगी. 7 फरवरी को सुबह 7 बजकर 6 मिनट से लेकर 9 बजकर 18 मिनट तक रहेगा.

पूजन विधि 
प्रात:काल स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पुष्प, धूप आदि अर्पित करें. इस दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की आराधना करें, साथ ही रात्रि में जागरण और हवन करें. इसके बाद द्वादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं और पंडितों को भोजन कराने के बाद स्वयं अन्न ग्रहण करें.

उपाय 
1. षटतिला एकादशी के दिन पूजन में तिल से हवन करें और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते समय ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें.

2. इसके अलावा षटतिला एकादशी के दिन तिल से तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. इस दिन तिल से तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार को धन समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.

व्रत कथा 
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ पहुंचे. वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा. नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी. उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी. वह मेरी अन्नय भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी. एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की. व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया. जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया. मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया. कुछ समय बाद वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई.

यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला. खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि, मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है. मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं. स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई. इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है.

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