यूपी के सियासी शतरंज में राहुल गांधी की ‘ढाई घर ‘ की चाल से बढ़ गई सपा की टेंशन!

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ABC NEWS: शतरंज के खेल में घोड़ा भले ही वजीर की तरह हर तरफ न चलता हो, लेकिन वह सिर्फ ढाई घर चलकर ऐसा चक्रव्यूह रच देता है जिससे निकलना आसान नहीं होता है. कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की अगुवाई कर रहे राहुल गांधी के पास यूपी में चलने के लिए बहुत ज्यादा चाल नहीं थी, लेकिन सूबे में बिछी शतरंज की बिसात पर ‘ढाई दिन’ चलकर अपनी पार्टी के लिए उम्मीद की किरण जगा गए तो सपा की राजनीतिक ‘टेंशन’ भी बढ़ा गए.

राहुल की यात्रा ने रखी 2024 की नींव?

कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ उत्तर प्रदेश से हरियाणा में प्रवेश कर गई है, लेकिन राहुल गांधी ने यूपी में ढाई दिन गुजारकर तीन दशक के सियासी वेटिंलेटर पर पड़ी अपनी पार्टी को खड़ा तो नहीं कर सके, लेकिन ऑक्सीजन जरूर दे दिया है. राहुल सिर्फ ढाई दिन के लिए ही आए, लेकिन 2024 के चुनाव के लिए एक मजबूत सियासी आधार रख गए. यूपी के लोनी बार्डर से लेकर कैराना तक राहुल गांधी की यात्रा में उमड़ा मुस्लिम समुदाय का जनसैलाब कांग्रेस के अंदर एक नई ऊर्जा पैदा कर रहा है तो सपा को नए तरीके से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है.

राहुल गांधी की यात्रा को सफल बनाने के लिए कांग्रेस के अंदर जो रणनीति बनाई गई थी, उसमें वह सफल रही. भारत जोड़ो यात्रा का रूट बनाने से लेकर भीड़ जुटाने तक की प्लानिंग थी. राहुल गांधी यूपी के जिन तीन जिलों से गुजरे, उनमें मुस्लिमों की बड़ी संख्या है. गाजियाबाद, बागपत, शामली और कैराना में मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं. यह कांग्रेस का पारंपरिक वोटर रहा है. राहुल गांधी ने भले ही दिन के लिए ही सही, लेकिन उत्तर प्रदेश के कोने-कोने से लोगों को भारत जोड़ो यात्रा के लिए जुटाया.

मुस्लिमों का साथ, कांग्रेस को मिलेगा खोया जनाधार?

राहुल गांधी जब पश्चिमी यूपी इलाके से गुजरे तो मुस्लिम समुदाय उनका स्वागत करने के लिए उमड़ पड़ा. शामली, कैराना में जिस तरह की भीड़ राहुल गांधी की यात्रा में उतरी, कहा जा रहा है कि पिछले चार महीने से चल रही भारत जोड़ो यात्रा में कहीं नहीं दिखी. राहुल जिस रास्ते से पैदल गुजर रहे थे, उन पर मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों से लेकर हिजाब पहनी मुस्लिम महिलाएं भी कतारों में खड़ी दिखी. इतना ही नहीं कांग्रेस और राहुल गांधी जिंदाबाद के नारे भी लग रहे थे.

राहुल गांधी मुस्लिम क्षेत्र शामली से निकले तो उनके साथ मुस्लिम उलेमा और कांग्रेस के कई मुस्लिम नेता साथ दिखे. यात्रा में मुस्लिम समुदाय के शिरकत करने से कांग्रेस के हौसले बुलंद हुए हैं तो सपा के लिए चिंता पैदा कर दी है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के जरिए पश्चिमी यूपी के इन तीनों जिलों में जाने का उद्देश्य खिसक चुके मुस्लिम वोटबैंक को वापस लाने की कवायद है. राहुल गांधी के साथ मुस्लिम नेताओं को खास तवज्जो दी गई तो बीजेपी को तोड़ने वाली पार्टी बताया गया.

राजनीतिक विश्लेषक सैय्यद कासिम कहते हैं कि राहुल गांधी आरएसएस और बीजेपी पर आक्रमक रुख अपनाकर मुस्लिम समुदाय के विश्वास को जीतने की कोशिश कर रहे हैं. संघ-बीजेपी पर राहुल का इतना खुलकर बोलना मुस्लिम समुदाय को पसंद आ रहा है. मुसलमानों से जुड़े मुद्दे पर जब कोई नहीं बोल रहा है तो राहुल गांधी उनके लिए खुलकर खड़े हैं. यही बात मुस्लिमों को कांग्रेस की तरफ लौटने के लिए मजबूर कर सकती है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पहली पसंद रही है.

बता दें कि यूपी में कांग्रेस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शिरकत करने के लिए गैर-बीजेपी दलों को न्योता भेजा था. अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक ने राहुल की पहल का स्वागत किया, लेकिन यात्रा से दूरी बनाए रखी. जयंत चौधरी खुद नहीं आए, लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भेजा. माना जा रहा है कि जयंत चौधरी ने पश्चिमी यूपी की सियासी समीकरण को देखते हुए यह कदम उठाया था, क्योंकि मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका में है.

कांग्रेस की सक्रियता, सपा के लिए क्या संकेत?

सपा के प्रवक्ता सुनील सिंह साजन ने कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर सपा किसी तरह के कोई तनाव में नहीं है, क्योंकि सपा का वोटर अखिलेश यादव के साथ है. भारत जोड़ो यात्रा में जुटी भीड़ की बात तो राहुल गांधी के साथ चल रही वह भीड़ है, जिन्होंने बीजेपी को पिछले चुनावों में जिताया था. विपक्ष की लड़ाई राहुल गांधी के साथ नहीं है, विपक्ष तो एक है. राहुल की यात्रा का तनाव बीजेपी के ऊपर देखने को मिल रहा है ना कि,सपा के ऊपर. हम कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं बल्कि हमारी लड़ाई बीजेपी से है.

सपा नेता भले राहुल की यात्रा में उमड़ी मुस्लिम भीड़ से इंकार कर रहे हों, लेकिन चिंता साफ दिख रही है. राहुल गांधी की यात्रा में उमड़े मुस्लिम समुदाय से सपा के अंदर कांग्रेस के लेकर नए तरीक से मंथन हो रहा है, क्योंकि दोनों ही पार्टियों का सियासी आधार और नजर मुस्लिम वोटरों पर है. सपा के सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी की यात्रा में जिस तरह से भीड़ जुटी है, उसके चलते पार्टी में कांग्रेस को लेकर विचार-विमर्श किया जा रहा है.

2024 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की बात आती है तो सपा अपनी शर्तों पर ही करेगी. सपा सूबे में 8 से 10 सीटें कांग्रेस लिए छोड़ सकती है. ये यूपी की वह सीटें है, जहां सपा कभी भी नहीं जीत सकी है. लखनऊ, कानपुर, रायबरेली, अमेठी, बनारस, गाजियाबाद, बाराबंकी, नोएडा, महराजगंज, कुशीनगर जैसी सीटें हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह मुसलमानों का मनोवैज्ञानिक दबाव है, जिसे लेकर सपा पहले ही सतर्क हो रही है.

यूपी में भारत जोड़ो यात्रा में उमड़ा जनसैलाब जहां चर्चा में है तो श्रीराममंदिर तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने भी राहुल की यात्रा की प्रशंसा की, उससे समझा जा सकता है कि सत्ता पक्ष भी इसे हल्के में नहीं ले रहा है. यूपी का इतिहास बताता है कि यहां सपा, बसपा या अन्य क्षेत्रीय दल कांग्रेस के पैर पर पैर रखकर ही आगे बढ़े हैं. इसी के चलते कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हुए तीन दशक से ज्यादा का वक्त हो गया. प्रियंका गांधी ने भी पूरी ताकत लगाकर देख लिया, लेकिन कांग्रेस में जान नहीं डाल सकीं. ऐसे में राहुल गांधी ने ढाई दिन पैदल चलकर सूबे में 2009 जैसे नतीजे दोहराने की उम्मीद जगा दी है.

2009 वाला प्रदर्शन, क्या कांग्रेस के लिए फिर वो समीकरण?

2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस यूपी में सपा से गठबंधन करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने खास तवज्जो नहीं दी. ऐसे में कांग्रेस ने आरएलडी के साथ मिलकर चुनाल लड़ा था और पश्चिमी यूपी में सपा और बसपा का सफाया कर दिया था. कांग्रेस ने सपा के बराबर सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जिसमें मुस्लिम और जाट वोटों की भूमिका अहम रही थी. कांग्रेस 22 और रालोद पांच संसदीय सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन उसके पांच साल के बाद 2014 में कांग्रेस सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई थी और 2019 में तो अमेठी जैसी सीट भी गवां दी.

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन जिले होकर गुजरी है, लेकिन अपना राजनीतिक असर छोड़ गई है. राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के अंदर नया उत्साह भरा तो अपने कोर वोटबैंक मुस्लिम का विश्वास फिर से जीतते नजर आए. इतना ही नहीं किसानों और दलितों को साधने के साथ-साथ विपक्षी दलों को भी संदेश दे गए. खासकर सपा और आरएलडी जैसे राजनीति दल को, क्योंकि कांग्रेस को हल्के में लेना सियासी तौर पर मंहगा पड़ सकता है?

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