ABC NEWS: यूपी विधानसभा में विशेषाधिकार हनन मामले में दोषी छह पुलिसकर्मियों को विधानसभा ने एक दिन के (शुक्रवार रात 12 बजे तक) कारावास की सजा सुनाई है. इन्हें दिन की तारीख बदलने तक विधानसभा के अंदर ही बने लॉकअप में रहना होगा। इन पुलिसवालों को विधानसभा की विशेषाधिकार हनन समिति ने सर्वसम्मति से दोषी ठहरा दिया था. विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने सदन में सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि लॉकअप में रहने के दौरान पुलिसवालों का कोई उत्पीड़न नहीं होगा. उन्हें लॉकअप में भोजन, पानी इत्यादि की सुविधा दी जाएगी.
जिन पुलिसअधिकारियों को सजा सुनाई गई है उनमें तत्कालीन क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा अब्दुल समद, तत्कालीन किदवई नगर थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, एसआई थाना कोतवाली कानपुर नगर त्रिलोकी सिंह, किदवई नगर थाने के सिपाही छोटे सिंह यादव, काकादेव थाने के सिपाही विनोद मिश्र और काकादेव थाने के सिपाही मेहरबान सिंह यादव शामिल हैं. इसमें तत्कालीन क्षेत्राधिकारी अब्दुल असर रिटायर हो चुुुके हैं। विधानसभा में शुक्रवार को कार्यवाही की शुरुआत करते हुए कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन को अदालत के रूप में परिवर्तित करने का प्रस्ताव रखा जिसे सदन ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया. इसके बाद सदन में सभी छह पुलिसवालों को कारावास की सजा पर विचार करने के प्रस्ताव को भी सदन ने सर्वसम्मति से पास कर दिया. इसके बाद सदन के सदस्यों को इस विषय पर बोलने का मौका दिया गया.
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव का नाम लिया. अखिलेश यादव उस समय सदन में नहीं थे. इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने पूछा कि सदन में सपा के कोई अन्य सदस्य बोलना चाहते हैं? किसी की ओर से इच्छा जाहिर न करने पर विधानसभा अध्यक्ष ने अपना दल के सदस्य को बोलने का अवसर दिया. इसके बाद निषाद पार्टी के सर्वेसर्वा और मंत्री संजय निषाद ने अपने विचार व्यक्त किए. सबने इस विषय में निर्णय लेने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को अधिकृत किया.
सलिल विश्नोई को इंसाफ की खातिर 19 साल करना पड़ा इंतजार
विधायक सलिल विश्नोई को 19 साल बाद शुक्रवार को इंसाफ मिलने वाला है। शहर की बदहाल बिजली व्यवस्था के बीच आपूर्ति बहाल करने की मांग को लेकर सड़क पर उतरे सलिल को पुलिस ने न केवल बुरी तरह पीटा था, बल्कि बाद में दोषियों पर कार्रवाई तक नहीं की. पुलिस की बेरहमी से उनके पैर में चार फ्रैक्चर हुए थे. वह तीन दिन तक उर्सला अस्पताल में भर्ती रहे थे. बाद में महीनों बिस्तर पर रहे. मेडिकल रिपोर्ट के बाद कोतवाली में एफआईआर दर्ज तो की गई पर कार्रवाई कुछ नहीं हुई. उन्होंने बताया- पुलिस ने उस केस को दाखिल दफ्तर कर दिया. बस सदन से ही उम्मीद थी। अब विधानसभा ही मेरे साथ हुई बेरहमी का इंसाफ करेगी.
सलिल हर साल 15 सितंबर को संघर्ष दिवस मनाते हैं। 2004 की इसी तारीख को उनका सामना पुलिस जुल्म से हुआ था. कहा- जनसमस्याओं को लेकर प्रदर्शन, पुतला फूंकना कोई अपराध नहीं था. तत्कालीन बाबूपुरवा सीओ अब्दुल समद और एसओ ऋषिकांत ने साजिशन लाठीचार्ज किया था. इस बात की शिकायत पर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने जांच समिति को मामला दिया था और इसमें लाठीचार्ज करने वाले दोषी पाए गए थे. तीन दिन में अस्पताल से तो छुट्टी मिल गई थी पर साढे़े तीन महीने घर में कैद रहा था. इसके बाद न्याय की उम्मीद थी, वह मिली। अब सदन आगे का फैसला लेगा.