इस बार 26 जनवरी को 21 तोपों की सलामी में गरजेंगी स्वदेशी इंडियन फील्ड गन

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ABC NEWS: पारंपरिक तौर पर गणतंत्र दिवस पर 21 तोपों की सलामी जिस तोप से होती थी, अब वो नहीं होगी. पहले गणतंत्र दिवस से पिछले साल तक 21 तोपों की सलामी ब्रिटिश जमाने की 25-पाउंडर आर्टिलरी (25-Pounder Artillery) से होती थी. अब इस बार से यह भारत में बनी 105 मिमी के इंडियन फील्ड गन (105 mm Indian Field Gun) से होगी.

चीफ ऑफ स्टाफ दिल्ली एरिया मेजर जनरल भवनीश कुमार ने कहा कि हम स्वदेशीकरण की तरफ बढ़ रहे हैं. वो समय दूर नहीं है जब हमारे सारे उपकरण और यंत्र स्वदेशी होंगे. 74वें रिपब्लिक डे परेड पर ज्यादातर रक्षा उपकरण स्वदेशी प्रदर्शित किए जा रहे हैं. जिसमें आकाश वेपन सिस्टम, रुद्र और एएलएच ध्रुव जैसे हेलिकॉप्टर होंगे. आइए जानते हैं ब्रिटिश पाउंडर तोप और इंडियन फील्ड गन में क्या अंतर है. क्या इनका इस्तेमाल अभी किसी युद्ध में हो सकता है.

25-पाउंडर आर्टिलरी 

25-पाउंडर आर्टिलरी असल में एक ब्रिटिश फील्ड गन और हॉवित्जर रही है. जिसका इस्तेमाल 1940 से होता आ रहा है. इस तोप का सबसे ज्यादा इस्तेमाल द्वितीय विश्व युद्ध में हुआ था. इसके बाद से लगातार इसका इस्तेमाल इराकी सिविल वार तक किया गया. इस तोप का जवन 1633 किलोग्राम होता है. लंबाई 15.1 फीट होती है. नली की लंबाई 8.1 फीट होती है. ऊंचाई 3.10 फीट और चौड़ाई 7 फीट. इसे चलाने के लिए 6 लोगों की जरुरत पड़ती थी.

इससे 88X292 मिमी का हाई-एक्सप्लोसिव, एंटी-टैंक, स्मोक या HESH गोले दागे जा सकते हैं. आमतौर पर इसमें 11.5 किलोग्राम वजन के गोले लगते हैं. यह तोप अगर तेजी से फायर करे तो यह एक मिनट में 6 से आठ गोले दाग सकती है. इसके गोले की रेंज साढ़े बारह किलोमीटर है. गोला आधा किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से आगे बढ़ता है. सेकेंड वर्ल्ड वॉर में इसका ज्यादातर इस्तेमाल दुश्मन के टैंकों को ध्वस्त करने के लिए किया जाता था.

भारतीय सेना ने इस तोप का इस्तेमाल पाकिस्तान के साथ हुए पहले युद्ध यानी 1947 के भारत-पाक युद्ध में किया था. इसके बाद 1965 और 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी किया. यहां तक कि चीन के साथ 1962 में हुए युद्ध के समय भी भारत ने इस ब्रिटिश तोप से गोले दागे.

105 मिमी इंडियन फील्ड गन 

पाउंडर गन को हटाने के लिए आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (ARDE) ने 1972 में इंडियन फील्ड गन को बनाया. इसका उत्पादन 1984 से जबलपुर की गन कैरिज फैक्ट्री में शुरू हुआ. इस काम में कानपुर स्थित फील्ड गन फैक्ट्री भी मदद कर रही थी. वहां भी इस तोप का निर्माण चल रहा था. इंडियन फील्ड गन के कई फीचर ब्रिटिश L118 Light Gun से मिलते-जुलते हैं. यह तोप हल्की है, इसलिए इसे कहीं भी ले जा सकते हैं. खासतौर से पहाड़ों पर. इस तोप की रेंज 25-पाउंडर आर्टिलरी से ज्यादा ताकतवर और रेंज भी अधिक है. (फोटोः AFP)इंडियन फील्ड गन के तीन मॉडल हैं. एमके-1, एमके-2 और ट्रक माउंटेड. सबसे कम वजनी तोप 2380 किलो की है. जबकि सबसे भारी वाली 3450 किलोग्राम की. इसकी लंबाई 19.6 फीट होती है. इसकी नली 7.7 फीट है. चौड़ाई 7.3 फीट और ऊंचाई 5.8 फीट है. इसमें 105×371 mm R गोला पड़ता है. इसका गोला आधा किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से बढ़ता है. इसकी रेंज 17 से 20 किलोमीटर है.

यह तोप हर मिनट में छह गोले दाग सकता है. माइनस 27 डिग्री सेल्सियस से लेकर 60 डिग्री तापमान तक काम करने की क्षमता है इस तोप में. इस तोप को किसी भी जगह पहुंचाना आसान है. क्योंकि इसके दो-तीन हिस्से हैं जो अलग-अलग हो जाते हैं. युद्धक्षेत्र में इनका इस्तेमाल अब भी हो सकता है. अब इनमें सेल्फ प्रोपेल्ड वैरिएंट्स भी आ गए हैं.

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