एक जिद ने कैसे खत्म कर दिया आजम खान का सियासी करियर? अर्श से पहुंचाया फर्श पर

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ABC NEWS: वक्त तो सबका बदलता है और वक्त की लाठी की आवाज भी नहीं होती है. यह मोहम्मद आजम खान से ज्यादा कौन समझ सकता है लेकिन अपने पूरे सियासी करियर में जौहर विश्वविद्यालय बनाने की एक उनकी अजीब किस्म की जिद ही ने उन्हें अर्श से फर्श से पहुंचा दिया.

कभी सोचा नहीं होगा कि वह भू-माफिया घोषित हो जाएंगे. उन पर जमीन हथियाने, सरकारी पैसे का दुरुपयोग करने, किताबें चुराने, नफरती भाषण देने समेत कई मामलों में मुकदमे दर्ज हैं. अब उनका सियासी करियर तो लगभग चौपट हो ही गया है और आगे कितने दिन वह जेल में रहेंगे यह भी तय नहीं है. न पर मुकदमों की कमी नहीं न ही उनके सियासी दुश्मनों की. अपनी शोलाबयानी के लिए मशहूर आजम खां के निशाने पर कौन नहीं रहा. भाजपा वाले सीधे निशाने पर रहे। रामपुर का नवाब खानदान हो या अमर सिंह. रामपुर से जयाप्रदा को सांसद बनाने में अहम  रोल निभाने वाले वाले इस शख्स ने उन पर ओछी टिप्पणियां कीं. और एक वक्त मुलायम सिंह यादव भी पर उनके निशाने पर आ गए थे. महिला सांसदों पर भी विवादित टिप्पणी कर चुके हैं. मीडिया से भी उनकी कई मौकों पर तल्खी रही.

खासे पढ़े लिखे आजम खां शेरो शायरी के जरिए विरोधियों पर खूब तंज करने में माहिर रहे हैं, उनके तीखे धारदार भाषण के आगे विरोधी निरुत्तर हो जाया करते थे. मिजाज में तल्खी उनकी भाषा में भी दिखती है वह यूपी विधानसभा पिछले साल ही 10वीं बार विधायक चुन कर पहुंचे थे लेकिन अब उनकी हेटस्पीच मामले में सदस्यता जा चुकी है.

 जौहर विश्वविद्यालय बना पराभव का सबब 
जब सरकारी पैसे से मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय बनाने और ताउम्र उसका चांसलर बनने की उन्होंने जिद पकड़ ली तो मुलायम ने भी उनकी ताकत को समझते हुए उनके तौर तरीकों पर सवाल नहीं किए. पर राजभवन में तत्कालीन राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने उस सरकारी विश्वविद्यालय वाले बिल का मंजूर करने से इंकार किया और आजम खां की तीखी टिप्पणियों को गंभीरता से लेते हुए उन्हें मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के साथ राजभवन तलब किया. अंदर क्या हुआ यह राजभवन के बाहर आए आजम खां के चेहरे से ही पता लग गया. बताया जाता है कि राज्यपाल ने उन्हें कड़ी चेतावनी देते हुए फटकार लगाई थी. इसके बाद आजम खां ने इसे निजी विश्वविद्यालय के रूप में बनवाना शुरू किया. बस यहीं से आजम खां के पराभव की बिसात भी बिछने लगी। शानदार  विश्वविद्यालय बनाने की तमन्ना में उन्होंने फंड एकत्र करने लिए, जमीन लेने के लिए, पुस्तकालय बनाने के लिए जो सही गलत तौर तरीके अपनाए, गरीबों की जमीन विश्वविद्यालय में कब्जा कर मिला ली गई.

भाजपा सरकार के आने के कुछ समय बाद उनके दुर्दिन शुरू हुए। तब से लेकर अब तक वह कानूनी शिकंजे में ऐसा फंसे जिससे निकलने की कोई राह नहीं दिखती. वह 2019 का लोकसभा चुनाव रामपुर से जीते. बाद में इस सीट पर हुए उपचुनाव में आजम अपने प्रत्याशी को नहीं जिता पाए.

 अखिलेश की कैबिनेट में नहीं  जाते थे आजम 
मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश यादव को उनकी बातें माननीं पड़ी. वह ऐसे मंत्री थे जो लंबे समय तक अखिलेश की कैबिनेट बैठक में नहीं जाते थे. उनकी नाराजगी जब जाहिर होती थी तो एक दो बार अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री रहते उन्हें मनाने उनके घर जाना पड़ा.  वह सपा के मुस्लिम चेहरे भी माने जाते हैं, हालांकि सपा के कई अन्य मुस्लिम नेता इससे सहमत नहीं हैं. अब तो सपा पर ही आजम खां को अकेला छोड़ने का आरोप लगता रहता है.

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