1 जनवरी तक अदालत बंद, जजों की छुट्टियों पर कानून मंत्री के तंज के अगले ही दिन चीफ जस्टिस का ऐलान

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ABC NEWS: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि 17 दिसंबर से 1 जनवरी तक अदालत की कोई बेंच उपलब्ध नहीं रहेगी. इन दिनों में अदालत में सर्दियों की छुट्टी रहेगी. चीफ जस्टिस यह ऐलान कानून मंत्री किरेन रिजिजू के उस बयान के ठीक बाद किया है, जिसमें उन्होंने अदालतों में लंबी छुट्टियों पर सवाल उठाया था. राज्यसभा में गुरुवार को किरेन रिजिजू ने कहा था कि लोगों में यह भावना है कि अदालतों में लंबी छुट्टियां होती हैं. इसके चलते न्याय की मांग करने वाले लोगों को परेशानी होती है. कोर्ट रूम में मौजूद वकीलों को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि 17 दिसंबर से 1 जनवरी के बीच कोई बेंच उपलब्ध नहीं रहेगी.

दो सप्ताह के विंटर ब्रेक से पहले सुप्रीम कोर्ट का आज आखिरी कार्य दिवस था. अब अदालात में 2 जनवरी से कामकाज शुरू होगा। जजों की छुट्टियों को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं. हालांकि पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने इन सवालों को खारिज कर करते हुए कहा था कि समाज में यह गलत धारणा है कि जज बहुत ज्यादा छुट्टी लेते हैं और एंजॉय करते हैं. उन्होंने इसी साल जुलाई में रांची में एक लेक्चर में कहा था कि जज कई बार पूरी-पूरी रात जगते हैं और अपने फैसलों के बारे में विचार करते हैं.

उन्होंने कहा था, ‘यह धारणा लोगों के दिमाग में है कि जज बहुत आराम में रहते हैं. वे 10 से 4 ही काम करते हैं और छुट्टियों में मौज करते हैं। ऐसी धारणा गलत है. यदि जजों के बारे में यह नैरेटिव बनता है कि वे आराम करते हैं तो यह गलत है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.’ उन्होंने कहा कि जजों का काम काफी जटिल और बोझिल होता है. उन्हें सोचना पड़ता है कि उनके निर्णय का मानव समाज पर क्या असर होगा. उन्होंने कहा था कि हम कई बार वीकेंड्स में भी काम करते हैं. इस दौरान हम लोग रिसर्च करते हैं और लंबित निर्णयों को लिखते हैं. इस दौरान हम अपनी जिंदगी के बहुत से उत्सवों को खो देते हैं.

इससे पहले बीते साल नवंबर में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस जयंत नाथ ने कहा था कि यह धारणा गलत है कि जजों को स्कूलों की तरह छुट्टियां मिलती हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि हमें कठिन मेहनत करनी होगी ताकि यह धारणा बदली जा सके. उन्होंने कहा था कि यह बात सही है कि अदालतों में लंबे वक्त से तमाम केस पड़े हैं. दुर्भाग्य से लोग मामलों के निपटारों में देरी के लिए अदालतों को जिम्मेदार मानते हैं.

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