भारत को परेशान करने से बाज नहीं आ रहा चीन! अब समंदर में फेंक रहा कचरा

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ABC NEWS: समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण (Marine plastic pollution), समुद्री पारिस्थितिक तंत्र (Marine ecosystems) और उन सभी के लिए बहुत बड़ा खतरा है, जो जीविका, पर्यटन और अन्य सामाजिक या आर्थिक गतिविधियों के लिए समुद्र पर निर्भर हैं. माना जाता है कि समुद्र में जाने वाले प्लास्टिक का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही समुद्र की सतह पर तैरता है, जबकि बाकी सारा प्लास्टिक गहरे समुद्र के तलछट या समुद्र के तटों पर इकट्ठा हो जाता है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक है.

पश्चिमी हिंद महासागर द्वीपों पर भारी मात्रा में मलबा इकट्ठा हो रहा है. पर सवाल ये है कि ये कचरा आ कहां से रहा है? इसपर हाल ही में एक शोध किया गया और मलबे के स्रोत का पता लगाया गया है. शोधकर्ताओं ने इस खतरे को कम करने के सुझाव दिए हैं.

 

शोधकर्ताओं के मुताबिक, ये मलबा ज्यादातर उत्तर और पूर्वी हिंद महासागर (Indian Ocean) और जहाजों से आता है. इन पश्चिमी हिंद महासागर द्वीपों में से कई द्वीप, जैसे सेशेल्स (Seychelles) में अल्दाब्रा में बेहद कम या ज़ीरो प्रदूषण है, फिर भी इसके समुद्र तटों पर भारी मात्रा में कचरा जमा हो रहा है.

साइंस डायरेक्ट (Science Direct) जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, समुद्री तटों की सफाई करने पर कचरे में अक्सर चीन, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे दूर देशों के लेबल वाली बोतलें मिलीं, लेकिन वे उतनी स्पष्ट नहीं थीं. इसलिए हमने अपने अनुमान को स्पष्टा देने के लिए ग्लोबल मरीन डिस्पर्सल सिमुलेशन्स चलाया.

प्लास्टिक प्रदूषण भूमि से सीधे समुद्र में, या तो तट से या नदियों से प्रवेश कर सकता है. शोधकर्ताओं ने पाया कि इन द्वीपों पर ज्यादातर प्रदूषण खासकर इंडोनेशिया, भारत और श्रीलंका से आया था. हालांकि, उन्होंने पाया कि धाराओं, हवाओं और लहरों से किसी भी तरह इस बात का पता नहीं लग पाया कि इन समुद्री तटों पर पाई जाने वाली, चीन और थाईलैंड जैसे देशों से आने वाली बोतलों की संख्या कितनी है. इनमें से ज्यादातर बोतलें निश्चित रूप से जहाजों से फेंकी गई हैं.

शोधकर्ताओं ने पाया कि अल्दाब्रा की आधी बोतलों पर जो लेबल लगे थे, वो यही बता रहे थे कि वे चीन से आई हैं. इससे पता चलता है कि इन द्वीपों पर आने वाले अधिकांश मलबे को हिंद महासागर पार करने वाले जहाजों से, अवैध रूप से हटाया गया होगा.

शोधकर्ताओं का मानना है कि दक्षिणी सेशेल्स के लिए, फरवरी-अप्रैल में मानसूनी हवाएं, मुख्य रूप से समुद्र तट पर मलबे का कारण बन सकती हैं. उन्होंने सलाह दी है कि चूंकि लहरें समुद्र तटों पर मलबे को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ सकती हैं, इसलिए जब भी ये इकट्ठा हों उसके तुरंत बाद इसकी सफाई की जाए. उन्होंने यह भी कहा है कि इन द्वीपों पर जमा होने वाले और मलबे के प्रकार और इसके स्रोतों को ऑबज़र्व करने की तुरंत ज़रूरत है. उन समुद्र तटों को पहले देखना चाहिए, जहां नियमित रूप से साफाई नहीं की जाती है.

शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि मलबा इकट्ठा होने का मौसमी चक्र, एल नीनो (El Niño) जैसी घटनाओं की वजह से बढ़ सकता है, लेकिन इससे बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ सकता. शोध के मुताबिक, अल्दाब्रा जैसे कुछ दूर द्वीपों पर जमा होने वाला बहुत सारा मलबा मत्स्य पालन से आता है. पर्स-सीन फिशरीज़ (purse-seine fisheries) से जुड़ा, सेशेल्स बीच के किनारे फिशरीज़ वाला मलबा, सेशेल्स के पास, हिंद महासागर से आया था, लेकिन लॉन्गलाइन फिशरीज़ से जुड़े गियर बहुत दूर आए होंगे.

शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इन दूरदराज के द्वीपों के लिए प्रदूषण के स्रोत काफी जटिल हैं और बहुत सारे हैं. इसलिए वे प्रदूषण के स्रोतों पर रोक लगाने के प्रयासों का समर्थन करते हैं. इस मलबे के इकट्ठा होने की दर का कुछ हद तक अनुमान लगाया जा सकता है, जिससे आने वाले समय में साफ-सफाई करने में मदद मिलेगी.

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