सांसद रामशंकर कठेरिया को बड़ी राहत, दो साल की सजा पर जिला अदालत ने लगाई रोक

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ABC NEWS: आगरा की जिला अदालत ने सांसद रामशंकर कठेरिया को बड़ी राहत दी है. एमपी एमएलए कोर्ट द्वारा सुनाई गई दो साल की सजा पर अदालत ने रोक लगा दी है. सोमवार को सुनवाई के दौरान जिला अदालत ने कहा, जब तक अपील का निस्तारण नहीं हो जाता तब तक सजा पर रोक रहेगी. सांसद को अपील पर जमानत भी मिल गई है. 11 सितंबर को मामले में अगली सुनवाई होगी. बतादें कि दो दिन पहले मारपीट और बलवे के मामले में आगरा की एमपी/एमएलए कोर्ट ने रामशंकर कठेरिया को दो साल की सजा सुनाई थी.  हालांकि, सांसद को तुरंत जमानत भी मिल गई थी. सांसद ने एमपी एमएलए  कोर्ट के फैसले को जिला अदालत में चुनौती दी थी.

लोकसभा सदस्यता जाने का बढ़ा खतरा
एमपीएलए कोर्ट से दो साल की सजा मिलने के बाद रामशंकर कठेरिया की सांसदी पर खतरा बढ़ गया है. फिलहाल जिला अदालत ने अपील के निस्तारण होने तक सजा पर रोक लगा दी है, लेकिन अपील के निस्तारण के बाद भी राशंकर कठेरिया को सजा सुनाई जाती है तो उनकी सदस्यता समाप्त हो सकती है. कानून के जानकार बताते हैं कि रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ द पीपुल्स एक्ट 1951 की धारा 8 (3) के अनुसार अगर किसी सांसद या विधायक को किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या इससे ज्यादा समय के लिए सजा सुनाई जाती है तो उसकी संसद या विधानसभा की सदस्यता ख़त्म हो जाती है.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सार्थक चतुर्वेदी कहते हैं कि सजा पूरी होने के बाद भी वह अगले छह साल तक चुनाव लड़ने के योग्य नहीं माना जाता. यानी सजा शुरू होने के बाद आठ साल तक चुनाव नहीं लड़ पाता, लेकिन इसी एक्ट की धारा 8 (4) कहती है कि सदस्यता तुरंत ख़त्म नहीं होती. अपील कोर्ट भी सजा पर स्टे कर दे तब भी सदस्यता समाप्ति के नियम पर कोई फर्क नहीं पड़ता. फर्क तब पड़ता है, जब अपील कोर्ट इस केस में दोष सिद्धि को ही गलत ठहरा दे, या इस पर स्टे दे दे.

क्या कहता है लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1) के मुताबिक़ दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना, रिश्वत लेना या फिर चुनाव में अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल करने पर सदस्यता जा सकती है. धारा 8 (2) के तहत जमाखोरी, मुनाफ़ाखोरी, खाने-पीने की चीज़ों में मिलावट या फिर दहेज निषेध अधिनियम के तहत दोषी ठहराए जाने और कम से कम छह महीने की सज़ा मिलने पर सदस्यता रद्द हो जाएगी. धारा 8 (3) के तहत किसी अगर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की सज़ा मिलती है तो वह सदन के सदस्य बने के योग्य नहीं रह जाएगा. अंतिम निर्णय सदन के स्पीकर का होगा. प्रावधान के मुताबिक़, वह सांसद या विधायक दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्य घोषित माना जाएगा और उसकी रिहाई के छह साल तक वह अयोग्य बना रहेगा.

अब तक किन नेताओं को गंवानी पड़ी सदस्यता?
सांसद रामशंकर कठेरिया पहले नेता नहीं हैं, जो किसी मामले में फंसे हैं. इससे पहले कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सजा पाने के बाद अपनी संसद सदस्यता गंवा चुके हैं. वहीं, एमबीबीएस सीट घोटाले में चार साल की सजा पाने के बाद कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य काजी रशीद अपनी सदस्यता गंवा चुके हैं. हमीरपुर के विधायक अशोक कुमार सिंह चंदेल, कुलदीप सेंगर और अब्दुल्ला आज़म को भी इसी एक्ट के तहत अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है.

रशीद मसूद (कांग्रेस) को साल 2013 में एमबीबीएस सीट घोटाले में दोषी ठहराया गया और उन्हें राज्यसभा की अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी. लालू प्रसाद यादव को भी साल 2013 में चारा घोटाले में दोषी ठहराया गया और उनकी भी लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो गई. उस समय वे बिहार में सारण से सांसद थे. जनता दल यूनाइटेड के जगदीश शर्मा भी चारा घोटाले के मामले में दोषी ठहराए गए और 2013 में उन्हें भी लोकसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी. उस समय वे बिहार के जहानाबाद से सांसद थे.

समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान को एक मामले में दोषी होने के बाद विधानसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी थी. रामपुर की एक अदालत ने उन्हें साल 2019 के एक हेट स्पीच के मामले में दोषी ठहराया था और तीन साल की सज़ा सुनाई थी. सपा नेता आज़म ख़ान के बेटे अब्दुल्ला आज़म की भी विधानसभा सदस्यता रद्द हुई. चुनाव लड़ते समय उन्होंने अपनी उम्र अधिक बताते हुए गलत शपथपत्र दिया था. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विधायक रहे विक्रम सैनी की भी सदस्यता ख़त्म कर दी गई थी. उन्हें 2013 के दंगा मामले में दो साल की सज़ा दी गई थी.

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