ABC NEWS: नगर निकाय चुनाव के नतीजों को देखकर भाजपा गदगद है. केंद्र और प्रदेश के बाद अब निकायों में भी भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हो गई है. या यूं कहें कि भाजपा ने यूपी में ट्रिपल इंजन सरकार बनाने को लेकर जो ख्वाब संजोया था वह पूरा कर लिया है. निकाय चुनाव में भाजपा को जीत यूं ही नहीं मिली, इसके योगी आदित्यनाथ का बड़ा योगदान है. यह कमाल सीएम योगी के एक फॉर्मूले के चलते हुए है. वहीं यूपी में दूसरे नंबर की पार्टी रही समाजवादी पार्टी को तगड़ा झटका लगा है. जानकार बताते हैं कि निकाय चुनाव में सपा को 2022 वाली गलती दोहराना भारी पड़ गया है. सपा की इस गलती का भाजपा ने पूरा फायदा उठाया है.
भाजपा ने जहां एक ओर सपा प्रत्याशियों में सेंधमारी की तो वहीं बसपा ने मुस्लिम दांव के जरिए सपा का पूरी तरह से खेल बिगाड़ दिया. पिछली बार नगर पालिका चुनाव में उभरी सपा इस बार वहां भी कुछ हद तक सिमट गई है. नगर निगम में भाजपा को 17 निगमों में से 16 सीटें मिली हैं, जबकि एक सीट पर अभी मतगणना जारी है. नगर पालिका की बात करें तो 199 सीटों में से भाजपा 88, सपा 38, बसपा 18, छह कांग्रेस और 49 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत ली है. नगर पंचायत की 544 सीटों में 202 पर भाजपा, 89 सीटों पर सपा, 39 पर बसपा, 16 पर कांग्रेस और 98 सीटों पर निर्दलीयों ने कब्जा जमाया है.
भाजपा के समीकरण ने दिलाई निकाय में जीत
विधानसभा चुनाव में परचम फहराने के बाद भाजपा ने यूपी निकाय चुनाव में भी भगवा लहरा दिया है. निगमों और पालिका में सरकार बनाने के लिए भाजपा कई दिनों से मैदान में थी. भाजपा ने सवर्ण मतदाताओं को साधा। भाजपा की इस जीत में ब्राह्मण, वैश्य, कायस्थ, पंजाबी मतदाताओं की भी अहम भूमिका रही है. भाजपा ने कई जगहों पर सवर्ण दांव चला जो काफी हद तक कामयाब रहा है. 17 में से पांच ब्राह्मण, चार वैश्य प्रत्याशी उतारकर भाजपा ने निगम का चुनाव अपने पाले में कर लिया.
भाजपा के भरोसे पर फिट बैठे उम्मीदवार
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में आए नतीजों के बाद भाजपा ने निकाय चुनाव की रणनीति बनानी शुरू कर दी थी. इस काम में भाजपा ने मंत्रियों, विधायकों के अलावा कार्यकर्ताओं को भी काम में लगा दिया था. टिकट देने को लेकर भाजपा ने जो रणनीति अपनाई वह पूरी तरह कामयाब रही. भाजपा निकाय चुनाव में मंत्री और विधायकों के परिवार के सदस्यों को टिकट न देकर पाअीर् के कार्यकर्ताओं को चुनावी मैदान में उतारा. जिसका नतीजा ये हुआ कि भाजपा को भारी बहुमत से निकाय चुनाव में जीत मिली है.
2022 वाली गलती कर गई सपा, भाजपा को मिल गया फायदा
लोकसभा चुनाव से पहले ही सपा का प्लान पूरी तरह से फेल हो गया है। 2024 को लेकर सपा निकाय चुनाव में जो प्रयोग कर रही थी वह सफल नहीं हो पाया. सपा को 2022 वाली गलती दोहराना निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा भारी पड़ गया है. जिसका सीधा-सीधा फायदा भाजपा ने उठाया. दरअसल सपा ने कई ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था जो निकाय चुनाव के समीकरण में कहीं से भी फिट नहीं बैठ रहे थे. शाहजहांपुर में पहली बार मेयर का चुनाव हो रहा था। सपा ने यहां से पूर्व मंत्री की बहू अर्चना वर्मा को मेयर का प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन ऐन वक्त अर्चना पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गईं. इसके अलावा बरेली में सपा ने जिसे अपना उम्मीदवार घोषित किया उसने नामांकन पत्र ही वापस ले लिया और सपा को निर्दलीय प्रत्याशी आईएस तोमर को समर्थन देना पड़ा. रायबरेली में भी कुछ ऐसा ही हुआ। यहां नगर पालिका सीट पर बगावत हो गई थी जिसका नुकसान भी सपा को उठाना पड़ा. इसके अलावा पश्चिमी यूपी में सपा-रालोद का गठबंधन होने के बाद भी दोनों पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया था.
बसपा ने बिगाड़ा सपा का खेल
निकाय चुनाव में जहां एक ओर भाजपा ने सपा में सेंधमारी की तो वहीं बसपा ने भी सपा का खेल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बसपा ने निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारकर सपा के खिलाफ दांव चला था. बसपा ने नगर पंचायत और नगर पालिका सीट पर भी मुस्लिम कार्ड खेला. बसपा के मुस्लिम पालिटिक्स ने निकाय चुनाव में सपा के सारे समीकरण ही बिगाड़ दिए.
निकाय चुनाव में सफल हो गया योगी का फॉर्मूला
निकाय चुनाव में भाजपा की जीत के पीछे सीएम योगी का बहुत बड़ा योगदान है. योगी के फॉर्मूले के चलते भाजपा यूपी में ट्रिपल इंजन सरकार बना सकती है. दरअसल निकाय चुनाव के चलते सीएम योगी के अलावा दोनों डिप्टी सीएम और यूपी सरकार के मंत्री विधायक भी भाजपा को जिताने में पूरी तरह से जुटे थे. योगी आदित्यनाथ ने ज्यादातर जगहों पर ताबड़तोड़ सभाएं की थी. इसके अलावा दोनों डिप्टी सीएम और मंत्री विधायक भी जगह-जगह जाकर भाजपा सरकार के उपलब्धियां और योजनाएं गिनाने में जुटे थे, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश गिनी-चुनी सीटों पर भी प्रचार करने के लिए पहुंचे थे. बसपा और कांग्रेस की बात करें तो मायावती ओर प्रियंका गांधी पूरे चुनाव में कहीं भी नहीं दिखाई दीं.