ABC NEWS: पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. पितृपक्ष 2022 की शुरुआत 10 सितंबर 2022 से हो चुकी है जो 25 सितंबर 2022 तक चलेंगे. पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरे विधि-विधान से अनुष्ठान किए जाते हैं. पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है. इन 16 दिनों में परिवार के उन मृत सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु शुक्ल और कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में हुई थी. यह पूर्वजों को ये बताने का एक तरीका है कि वो अभी भी परिवार का एक अनिवार्य हिस्सा हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म की शुरुआत कैसे हुई थी? बता दें कि पितृ पक्ष में श्राद्ध की शुरुआत महाभारत काल से चली आ रही है. श्राद्ध कर्म की जानकारी भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को दी थी. इसके पीछे की पूरी क्या कहानी है, यह भी जान लीजिए.
महाभारत काल से जुड़ी है मान्यता
गरुड़ पुराण में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था. भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था. दरअसल, अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर, निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था. इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा, “निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है. चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था. उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है. इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किए और उसके बाद से सारे ऋषि-मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिए थे. कुछ मान्यताएं बताती हैं कि युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका श्राद्ध किया था.
अग्नि देव से भी है संबंध
जब सभी ऋषि-मुनि देवताओं और पितरों को भोजन कर श्राद्ध में इतना अधिक भोजन कराने लगे तो उन्हें अजीर्ण हो गया और वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि इसमें अग्नि देव आपकी मदद कर पाएंगे. इसके बाद अग्नि देव ने कहा कि श्राद्ध में मैं भी आप लोगों के साथ मिलकर भोजन करूंगा. इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा. इसलिए हमेशा पितरों को भोजन कराने के लिए श्राद्ध का भोजन कंडे और अग्नि को चढ़ाया जाता है. इंद्र से भी जुड़ी है कथा मान्यताओं के मुताबिक, दानवीर कर्ण जो दान करने के लिए विख्यात थे, मरने के बाद स्वर्ग पहुंचे. वहां उनकी आत्मा को खाने के लिए सोन दिया जाने लगा. इस पर उन्होंने देवताओ के राजा इंद्र से पूछा कि उन्हें खाने में सोना क्यों दिया जा रहा है? इस बात पर भगवान इंद्र ने कहा कि तुमने हमेशा सोना ही दान किया है, कभी अपने पितरों को खाना नहीं खिलाया. बस इसके बाद पितृ पक्ष शुरू हुआ और कर्ण को वापस से धरती पर भेजा गया. पितृ पक्ष के इन 16 दिनों में कर्ण ने श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया और उसके बाद उनके पूर्वज भी खुश हुए और वह वापस स्वर्ग आए.
पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां
पितृ पक्ष 15 दिन तक चलते हैं और इन दिनों श्राद्ध करने की कौन सी तिथियां यह भी जान लीजिए:
पूर्णिमा श्राद्ध : 10 सितंबर 2022:
प्रतिपदा श्राद्ध : 10 सितंबर 2022
द्वितीया श्राद्ध : 11 सितंबर 2022
तृतीया श्राद्ध : 12 सितंबर 2022
चतुर्थी श्राद्ध : 13 सितंबर 2022
पंचमी श्राद्ध : 14 सितंबर 2022
षष्ठी श्राद्ध : 15 सितंबर 2022
सप्तमी श्राद्ध : 16 सितंबर 2022
अष्टमी श्राद्ध: 18 सितंबर 2022
नवमी श्राद्ध : 19 सितंबर 2022
दशमी श्राद्ध : 20 सितंबर 2022
एकादशी श्राद्ध : 21 सितंबर 2022
द्वादशी श्राद्ध: 22 सितंबर 2022
त्रयोदशी श्राद्ध : 23 सितंबर 2022
चतुर्दशी श्राद्ध: 24 सितंबर 2022
अमावस्या श्राद्ध: 25 सितंबर 2022
पितृ पक्ष का महत्व
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि श्राद्ध न होने स्थिति में आत्मा को पूर्ण मुक्ति नहीं मिलती. पितृ पक्ष में नियमित रूप से दान- पुण्य करने से कुंडली में पितृ दोष दूर हो जाता है. पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण का खास महत्व होता है. पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. पूर्वजों की कृपा से जीवन में आने वाली कई प्रकार की रुकावटें दूर होती हैं. व्यक्ति को कई तरह की दिक्कतों से भी मुक्ति मिलती है. श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण क्या है? मान्यताओं के मुताबिक, पितृ पक्ष में घर के पूर्वजों को याद किया जाता है और उसे ही श्राद्ध कहते हैं. पिंडदान का मतलब होता है कि हम अपने पितरों को खाना खिला रहे हैं. जिस तरह हम रोटी-चावल खाते हैं, उसी तरह हमारे पूर्वज पिंड के रूप में भोजन करते हैं. तर्पण घास की कुश (डाव) से दिया जाता है जिसका मतलब है कि हम पूर्वजों को जल पिला रहे हैं.