ABC NEWS: बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह 16 साल बाद जेल से रिहा हो गया है. सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद वह आज सुबह 4.30 बजे जेल से बाहर आया. गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी (DM) जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन उम्र कैद की सजा काट रहा था. आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बिहार सरकार की तीखी आलोचना भी हो रही है. इस बीच नीतीश सरकार के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दाखिल की गई है और बिहार सरकार की अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की गई है.
So murder convict and former MP Anand Mohan Singh is now going to be out of jail only because the Bihar govt changed the remission rules for life term convicts by removing the ‘murder of a govt servant on duty ’ clause. Wrong and Unacceptable. He may have been in jail for some… pic.twitter.com/xjAiiQOXJV
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) April 25, 2023
मांझी ने किया समर्थन
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM)के मुखिया जीतन राम मांझी ने आनंद मोहन की रिहाई का समर्थन किया है. उन्होंने कहा, ‘यह रिहाई कानूनी कार्रवाई के तहत हो रही है. हम आनंद मोहन को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, वह कोई क्रिमिनल नहीं थे, जिनकी हत्या हुई वो दलित थे. हत्या उचित नहीं थी, लेकिन जो सजा तय की गई थी उसे आनंद मोहन ने पूरा किया. अब सजा के बाद भी जेल में रखना कहां का नियम है.’
बढ़ सकती हैं आनंद मोहन की मुश्किलें
जहां एक तरफ आनंद मोहन की रिहाई को लेकर सियासत गर्म है वहीं पटना हाईकोर्ट में नीतीश सरकार के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल कर दी गई है. अमर ज्योति द्वारा दायर की गई इस याचिका में बिहार सरकार की जेल मैनुअल में बदलाव के आदेश को निरस्त करने की मांग की गई है. जेल मैनुअल 2012 के नियम 481(i) (क) में संशोधन कर “ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या” वाक्य हटाए जाने के खिलाफ याचिका दायर की गई है.याचिका में कहा गया कि सरकार के फैसले से सरकारी सेवकों का मनोबल गिरेगा.
गलत उम्र को लेकर विवाद
आनंद मोहन की उम्र को लेकर भी गलत जानकारी सामने आई. 2004 में आनंद मोहन ने अपने चुनावी एफेडेविट में उम्र 44 साल बताई थी, उसके हिसाब से आनंद मोहन की उनकी उम्र 64 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन रिहाई के सरकारी आदेश में आनंद मोहन की उम्र 75 साल बताई गई है. लालू और नीतीश दोनों से ज्यादा उम्र आनंद मोहन की बताई गई. जेल में रहते आनंद मोहन पर जेल में मोबाइल रखने, कोर्ट में पेशी के दौरान घर जाने का आरोप लगा था.
डीएम की हत्या के मामले में हुई थी सजा
साल 1994 को गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या की हत्या में आनंद मोहन का नाम आया था. इस मामले में 2007 में कोर्ट ने आनंद मोहन को सजाए मौत की सजा सुनाई थी. हालांकि, बाद में यह सजा आजीवन कारावास में बदल गई थी. आनंद मोहन को न तो हाईकोर्ट से राहत मिली और न ही सुप्रीम कोर्ट से. 15 सालों तक सजा काटने के बाद आनंद मोहन अब नीतीश सरकार के एक फैसले से रिहा हो गया, जिसके बाद सियासत तेज हो गई है.
आनंद मोहन की रिहाई
आनंद मोहन की रिहाई के राजनीतिक पहलू पर अगर गौर करें तो सत्ताधारी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार है, उसे लगता है कि बिहार के राजपूत समाज का समर्थन उसे लोकसभा चुनाव में मिल सकता है. आनंद मोहन के जरिए आरजेडी राजपूत वोटों को अपने पाले में लाना चाहती है तो बीजेपी भी इस वोटबैंक को अपने साथ जोड़े रखना चाहती है.
किस नियम के तहत रिहा
आनंद मोहन समेत 27 बंदियों को बिहार सरकार कारा अधिनियम में बदलाव करके जेल से रिहा कर रही है. बिहार सरकार ने कारा हस्तक 2012 के नियम 481 आई में संशोधन किया है. 14 साल की सजा काट चुके आनंद मोहन की तय नियमों की वजह से रिहाई संभव नहीं थी. इसलिए ड्यूटी करते सरकारी सेवक की हत्या अब अपवाद की श्रेणी से हटा दिया गया है. बीते 10 अप्रैल को ही बदलाव की अधिसूचना सरकार ने जारी कर दी थी.
आनंद मोहन की रिहाई पर भड़का IAS एसोसिएशन
IAS एसोसिएशन ने ट्वीट कर कहा, आनंद मोहन ने आईएएस जी. कृष्णैया की नृशंस हत्या की थी. ऐसे में यह दुखद है. बिहार सरकार को जल्द से जल्द इस फैसला वापस लेना चाहिए. ऐसा नहीं होता है, तो ये न्याय से वंचित करने के समान है. इस तरह के फैसलों से लोग सेवकों के मनोबल में गिरावट आती है. हम राज्य सरकार से अपील करते हैं कि बिहार सरकार जल्द से जल्द इस पर पुनर्विचार करे.