ABC News: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें यौन उत्पीड़न के मामले में जमानत की शर्त के रूप में आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाना था. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान जजों को संवेदनशीलता को लेकर कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं. साथ ही जजों को किसी भी तरह के स्टीरियोटाइपिंग से बचने के लिए कहा है. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्तों पर जमानत दे दी थी. जिसे अपर्णा भट्ट सहित 9 महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत कोई भी घिसी-पिटी टिप्पणी नहीं कर सकता है.
Supreme Court sets aside Madhya Pradesh High Court’s order & allows appeal filed by a group of women lawyers questioning a direction of the High Court that the accused should get ‘Rakhi’ tied on his hand by the victim, as a prerequisite condition of bail in sexual offences. pic.twitter.com/xg801XIc7l
— ANI (@ANI) March 18, 2021
कोर्ट ने यह माना कि इस तरह की शर्त लगाना अनुचित है. ऐसे मामलों में आदेश देते समय जजों को ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है.याचिका में बताया गया था कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आरोपी को ज़मानत देते समय अपनी पत्नी के साथ पीड़िता के घर जाने के लिए कहा. आदेश में यह भी कहा गया कि आरोपी पीड़ित के घर जाकर उससे राखी बंधवाए. वह पीड़िता के को मिठाई का डिब्बा और शगुन के पैसे भी दे. जीवन भर उसकी रक्षा का वचन दे. अपर्णा भट्ट समेत 9 महिला वकीलों ने इस तरह की शर्तों को आपत्तिजनक कहा था. उनका कहना था कि यौन उत्पीड़न एक गंभीर मसला है. कई बार महिला रिपोर्ट करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाती. रिपोर्ट करने के बाद भी वह मानसिक कष्ट में होती है. इस तरह की अजीब शर्त पर आरोपी की रिहाई अपराध की गंभीरता को घटाने और पीड़िता की तकलीफ को बढ़ाने वाली है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एटॉर्नी जनरल से सलाह मांगी थी. एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि हाई कोर्ट के जज ने जो आदेश दिया वह भावुकता में आ कर दिया गया मालूम पड़ता है. आरोपी को पीड़िता के घर जा कर राखी बंधवाने के लिए कहना एक ड्रामा है. इसकी निंदा की जानी चाहिए. नियुक्ति से पहले जजों को दी जाने वाली ट्रेनिंग के दौरान यह बातें सिखाई जानी चाहिए कि महिलाओं से जुड़े मामलों में आदेश देते वक्त उन्हें संवेदनशील होना चाहिए. वर्तमान में कार्यरत जजों तक भी यह बातें अलग-अलग तरीकों से पहुंचाई जानी चाहिए. आज कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि निचली अदालत और हाई कोर्ट के जजों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है. जस्टिस ए एम खानविलकर और एस रविंद्र भाट की बेंच ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में आरोपी को जमानत का आदेश देते समय उसे पीड़िता से मिलने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए. ऐसा कोई भी आदेश नहीं देना चाहिए जिससे शिकायतकर्ता महिला को मानसिक कष्ट हो.